- पर्यावरणविदों का संदेह, पटाखा कारखाना नहीं बल्कि बनता था बम
- आरोप : प्रशासन की विफलता के कारण घटी यह घटना
कोलकाता, समाज्ञा : उत्तर 24 परगना जिले के नैहाटी थानांतर्गत रामघाट के गंगा नदी के किनारे जब्त किये गये विस्फोटकों को अवैज्ञगनिक तरीके से नष्ट करने के दौरान हुए जबरदस्त विस्फोट से पूरा पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इस विस्फोटकांड ने मिट्टी, जल, ध्वनि और वायु प्रदूषण सभी को बढ़ा दिया है और बढ़े हुए प्रदूषण ने महानगर के पर्यावरणविदों की चिंता फिर से बढ़ा दी है। पर्यावरणविदों का कहना है कि विस्फोट के दौरान निकलने वाली विषाक्त कैमिकल ने गंगा नदी को भी प्रदूषित कर दिया है। पर्यावरणविदों का आरोप है कि जिस तरह से धमाका हुआ था वह पटाखों के विस्फोटक से नहीं हो सकता है। ये पटाखें नहीं बल्कि बम थे और बम के विस्फोटकों की तीव्रता के कारण ही ना सिर्फ उत्तर 24 परगना जिला बल्कि गंगा नदी के दूसरी तरफ हुगली जिले को भी हिला कर रख दिया। इसके साथ ही उनका आरोप है कि इस तरह के विस्फोटकों का इस्तेमाल आतंकी और माओवादी तथा नक्सलवादी करते हैं। पुलिस से बचने के लिए इन बमों को फेंकतें हैं जिससे 5 से 6 मिनट के लिए अंधेरा छा जाता है और पुलिस की नजरों से बचकर ये आतंकी फरार होने में कामयाब हो जाते हैं।
ऐसे पर्यावरण हो रहा है दूषित
पर्यावरणविदों का कहना है कि इस विस्फोटक का असर लंबे समय तक रहेगा जो हमारे पर्यावरण के लिए बिल्कुल अनुकूल है। इन विस्फोटकों में सोडियम हाइपोक्लोराइट का इस्तेमाल होता है जो काफी खतरनाक कैमिकल की श्रेणी में आता है। इसके अलावा अमोनिया, तरल नाइट्रोजन और ड्राई आइस जैसे कैमिकल का इस्तेमाल विस्फोटकों की तीव्रता बढ़ाकर ट्रिनिट्रोटोल्यून (टीएनटी) और ट्राईसीटोन ट्राइपरऑक्साइड (टीएटीपी) बनाया जाता है। टीएटीपी का इस्तेमाल सुसाइड बॉम्बर के रूप में होता है। इस तरह की खतरनाथ कैमिकल गंगा नदी के साथ ही जमीन में भी घुल गयी है। पर्यावरणविद्ों का मानना है कि नदी में घुले हुए कैमिकल को वहां मौजूद जलीय प्राणी व मछलियां खायेंगी और फिर उन मछलियों को जब लोग खायेंगे तब ये जहरीले कैमिकल लोगों के शरीर में प्रवेश करेंगे। वहीं दूसरी तरफ यह कैमिकल जिस जगह या मिट्टी में गिरेगी वहां कभी कृषि नहीं होगी और अगर ये कैमिकल किसी खेत या पौधों पर गिरेंगे और उनका सेवन गाय करेगी तो गाय के दूध में भी कैमिकल आ जायेगा और दूध से फिर हम इंसानों के भीतर भी समा जायेगा। इससे कई तरह की त्वचा संबंधि बीमारियों की होने की संभावना है। हालांकि गुरुवार को ही हुए विस्फोट के कारण बच्चे और बूढ़े काफी प्रभावित हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के नियमों की हुई अवहेलना
पर्यावरणविदों सोमेंद्र मोहन घोष का कहना है कि अगर यह पटाखा कारखाना होता तो इस कारखाने से जब्त किये गये विस्फोटकों की तीव्रता इतनी नहीं होती। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रायब्युनल (एनजीटी) के निर्देश के अनुसार 90 डेसीबल से ज्यादा आवाज वाली पटाखों का निर्माण नहीं हो सकता है। मगर जिन विस्फोटकों को जब्त किया गया था उसे एक पटाखा कारखाने से ही गत 3 जनवरी को निकाला गया था। उस कारखाने में ही विस्फोट के दौरान काम करने वाले 5 लोगों को भी अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा था। इससे यह संदेह गहरा रहा है कि यह पटाखों का मसाला नहीं बल्कि बम बनाने का विस्फोटक था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आखिर किस तरह प्रशासन की नजरों के सामने ही इस तरह का कारखाना सालों से चल रहा था।
विस्फोटक नष्ट करने की प्रक्रिया थी बिल्कुल गलत
पर्यावरणविदों का कहना है कि विस्फोटकों को नष्ट करने के लिए सबसे पहले एक कृत्रिम तालाब बनाने की जरूरत है। इस तालाब में करीब दो घंटें तक विस्फोटकों को डुबाकर रखा जाता है। इसके बाद एक बड़ा सा गड्ढ़ा खोदकर विस्फोटकों को गाड़ देना पड़ता है। साथ ही विस्फोटकों को नष्ट करने के लिए चीफ कंट्रोलर ऑफ एक्सप्लोसिव (नागपुर) जिसका एक ऑफिस धर्मतल्ला में, उसके एक अधिकारी, पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के एक अधिकारी, पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी और बम डिफ्यूजल एक्सपर्ट की मौजूदगी बेहद जरूरी होती है। मगर नैहाटी में पुलिस अकेले ही बिना किसी ट्रेनिंग के ही विस्फोटकों को नष्ट कर रही थी।
एनआईए से जांच की मांग की है पर्यावरणविदों ने
पर्यावरणविदों का समूह इस पूरे घटना की जांच एनआईए से करवाने की मांग कर रहे हैं। सोमेंद्र मोहन घोष का कहना है कि जांच से ही पता चलेगा कि आखिर हकीकत क्या है। लोगों को भी सच्चाई जानना काफी जरूरी है। इसके साथ ही उन्होंने बंगाल में अवैध पटाखा कारखनों के खिलाफ भी प्रशासन को सख्त कदम उठाने का आवेदन किया है।
पटाखा कारखाने के लाइसेंस के लिए हो सिंगल विंडो सिस्टम चालू : बाबला राय
नैहाटीकांड को लेकर बंगाल के अवैध पटाखा कारखाने को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। प्रशासन की ही लापरवाही से ही अवैध पटाखा कारखाना चल रहा है। मगर विडम्बना यह है कि पूरे बंगाल में पटाखा कारखाने के कारण 20 लाख लोगों की जीविका चलती है। आरोप यह है कि पटाखा कारखानों के लाइसेंस के लिए पटाखा व्यवसायियों की एड़ी -चोटी घिस जाती है मगर उन्हें लाइसेंस नहीं मिलते हैं। वेस्ट बंगाल फायर क्रेकर्स डेवल्पमेंट एसोसियेशन के चेयरमैन बाबला राय ने बताया कि पटाखा बनाना यहां का एक कुटीर उद्योग है। कारखाना कहकर यहां कुछ नहीं है। यहां घर-घर में ही पटाखें बनते हैं और इसे ही कारखाना कह दिया जाता है। करीब 1 लाख घरों में पटाखें बनते हैं। उन्होंने बताया कि पूरे बंगाल में 20 लाख लोग इस पेशे से जुड़े हुए हैं। यहां केवल 2 लाइसेंस प्राप्त एक्सप्लोसिव कारखाने हैं बाकि कारखानों के पास कोई लाइसेंस नहीं है। उन्होंने बताया कि जगह की कमी के कारण भी यहां कारखाने नहीं बने हैं और जो कारखानों को खोलना चाहता है वे विभागों के चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं। उन्होंने कहा कि अगर लाइसेंस के लिए सिंगल विंडो सिस्टम चालू हो जाये तो इन 20 लाख लोगोंं का भविष्य सुरक्षित हो जायेगा। इसके साथ ही उन्होंने नैहाटी की घटना को लेकर पुलिस पर ही आरोप लगाया है। उनका आरोप है कि बिना किसी प्रशिक्षण और अनुभव के ही पुलिस ने यह काम किया है। इस घटना में ना ही पटाखा व्यवसायी और ना ही पटाखा निर्माता की कोई भूमिका है।
Story – बबीता माली