मऊ : मऊ जनपद के एक गांव अतरसावां में जन्मे और डीएवी इंटर कॉलेज, मऊ से हाई स्कूल पास कर 16 वर्ष की आयु में ही भारतीय थल सेना ज्वाइन किए जहां निरंतर पराक्रम शौर्य एवं बौद्धिक क्षमता का परिचय देते हुए इंडियन कमीशंड ऑफिसर के रूप में भारतीय सेना की ऑफीसर्स ट्रेंनिंग अकैडमी व इंडियन मिलिट्री एकेडमी, आर्मी वार कॉलेज, आर्मी एयरबोर्न ट्रेनिंग स्कूल, हाई एल्टीट्यूड वार फेयर स्कूल, कंट्री इनसरजेंशी एंड जंगल वार फेयर स्कूल जैसी 12 सशक्त ट्रेनिंग अकैडमी में अपनी विलक्षण प्रतिभा को प्रदर्शित करते हुए भारतीय थल सेना का अंग बन भारत चाइना युद्ध 1962 भारत पाकिस्तान युद्ध 1965 भारतीय पाकिस्तान युद्ध 1971 ऑपरेशन मुक्त वाहिनी बांग्लादेश बटवारा, ऑपरेशन ब्लू स्टार अमृतसर, हाई एल्टीट्यूड वार फेयर पोजीशन सियाचिन ग्लेशियर जैसी अनगिनत शौर्य गाथाएं उनके कंधों पर बैच मेडल और स्टार के रूप में सजाते रहे। अपने बैच के सर्वश्रेष्ठ पैराट्रूपर (पैराशूट जंपिंग के एक्सपर्ट) होने के नाते ऑपरेशन मुक्ति वाहिनी में बांग्लादेश! क्रांति के जनक शेख मुजीबुर रहमान (बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता) को बचाने के लिए फारवर्ड पैराट्रूपर्स ट्रूपुश के सदस्य के रूप में रात 1:00 बजे बिना किसी अच्छे नाइट विजन डिवाइस के बावजूद भी पैराशूट से छलांग लगाकर पाकिस्तानी सेना के चंगुल से साढे 4 घंटे क्लोज राइफल वार करके बंगबंधु को बाहर निकाला था और अपने अदम्य शौर्य का परिचय उस ट्रूप्स के साथ समस्त राष्ट्र को इन्होंने कराया था। इनके शौर्य से पूरा गांव ही नहीं, पूरा जिला क्या पूरा देश गौरवान्वित हुआ था। जयहिन्द
नहीं रहे कैप्टन मारकण्डेय राय
