कोलकाता : मृत्यु के बाद भी समाज के कल्याण में अपना योगदान देना चाहती हैं राज्य की स्वास्थ्य राज्य मंत्री चंद्रीमा भट्टाचार्य। इसके साथ ही वह चाहती हैं कि उनके शरीर के अंगों से किसी बीमार को नयी जिन्दगी मिल जाए। इसी वजह से चंद्रीमा भट्टाचार्य ने मरणोपरन्त अंगदान करने का निर्णय लिया है। अंगदान करने की उनकी इच्छा परिस्थिति के दबाव में कोई बदल ना दें या किसी अन्य कारणवश उनकी यह इच्छा अधुरी ना रह जाए, इसे सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने कानूनी कदम उठाने का भी निर्णय लिया है। उन्होंने अंगदान करने की अपनी घोषणा को कानूनी रूप से पंजीकृत भी किया है। उनकी ब्रेन डेथ के बाद उनके शरीर को एसएसकेएम अस्पताल के एनाटॉमी विभाग को सौंप देना होगा। चंद्रीमा भट्टाचार्य का कहना है कि मैं एक डॉक्टर नहीं हूं किन्तु स्वास्थ्य विभाग की राज्य मंत्री हूं। उस लिहाज से चिकित्सा विज्ञान को यह मेरा अनुदान होगा। उनकी मृत्यु के बाद उनकी इस इच्छा को पूरी करने में परिवार की तरफ से कोई बाधा नहीं आएगी, इसलिए उनके पुत्र ने भी सहमति जतायी है। चंद्रीमा और उनके पति के साथ ही परिवार के अन्य तीन सदस्यों जिसमें उनकी देवरानी/जेठानी भी शामिल है, ने मरणोपरन्त अंगदान करने का निर्णय लिया है। चंद्रीमा के दिखाए रास्ते पर चलते हुए तृणमूल की नारी संगठन की कई सदस्यों ने भी अंगदान का निर्णय लिया है। कई बार ऐसा भी होता है कि किसी व्यक्ति ने मरणोपरन्त अंगदान का निर्णय तो ले लिया है, लेकिन बाद में परिस्थितिवश या परिवार द्वारा इस कार्य में बाधा पहुंचाने के कारण अंगदान नहीं हो पाता है। इस संबंध में स्वास्थ्य राज्य मंत्री का कहना है कि इसीलिए अब परिवार के किसी तीसरे व्यक्ति के ‘कॉन्सेंट’ (सहमति) की आवश्यकता होती है। मरणोपरन्त अंगदान के लिए कानून के अनुसार स्पेसिफिक परफॉर्मेंस ऑफ कन्ट्रैक्ट की आवश्कता होती है। किन्तु कई बार देखा जाता है कि इस कानून तो तोड़ा जाता है। इस संबंध में चंद्रीमा भट्टाचार्य का कहना है कि यह कानून ही काफी कमजोर है। कई बार देखा जाता है कि मृत्यु के बाद परिवार जब शव को घर ले जा रहे होते हैं, तब वे अंगदान करने के लिए राजी नहीं होते हैं। जिस व्यक्ति के साथ समझौता हुआ रहता है, वह उस समय जीवित नहीं रहता है।
मरणोपरन्त अंगदान करना चाहती हैं चंद्रीमा भट्टाचार्य
