पर्यावरण स्वच्छता में देश का प्रमुख शहर बना ‘सिटी ऑफ ज्वॉय

कभी देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में होती थी गिनती 

डब्ल्यूएचओ के निर्धारित मानकों से भी कम है वायु प्रदूषण की मात्रा 

मौमिता भट्टाचार्य 

कोलकाता, समाज्ञा : विश्व के कई शक्तिशाली देशों को धराशाही करने के बाद कोरोना वायरस की संक्रामक महामारी भारत में तांडव मचा रही है। अब तक देश में करीब 29500 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं जिसमें से 934 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। वहीं पश्चिम बंगाल में 697 लोग कोरोना से संक्रमित हैं जिसमें से 20 लोगों की मृत्यु का कारण कोरोना बना। कोरोना वायरस की इन खबरों के बीच आ रही एक खबर ने पर्यावरविदों के साथ-साथ आम लोगों के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी है। एक समय वायु प्रदूषण के मामले में देश की राजधानी दिल्ली को पीछे छोड़ने वाले कोलकाता की गिनती वर्तमान समय में देश के सर्वाधिक स्वच्छ शहरों में की जा रही है। माना जा रहा है लगातार लॉकडाउन व बारिश के कारण वायु में तैर रहे धूल-कणों की मात्रा में कमी आयी है। साथ ही माना जा रहा है कि वायु प्रदूषण के कम होने के कारण लोगों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी जिससे लोग कोरोना की संक्रामक महामारी से लड़ पाएंगे।

वायु प्रदूषण की मात्रा कम होने के प्रमुख कारण

महानगर हवा में प्रदूषण की मात्रा के कम होने का प्रमुख कारण लॉक डाउन को माना जा रहा है। इस संबंध में पर्यावरणविद् सौमेन्द्र मोहन घोष ने बताया कि लॉक डाउन के कारण प्रतिदिन महानगर की सड़कों पर दौड़ने वाले करीब 25 डिजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से प्रदूषण नहीं फैल रहा है। इसके साथ ही सड़क किनारे बने करीब 26 हजार होटलों में निम्न मान का कोयला जलावन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न गली-मुहल्लों में करीब 10 हजार लोग कपड़ों पर इस्त्री करने का कार्य करते हैं। यहां से निकलने वाला धुंआ भी पर्यावरण को काफी ज्यादा प्रदूषित करता है। उन्होंने कहा कि संपूर्ण लॉक डाउन होने के कारण लोग ना तो घरों से बाहर निकल रहे हैं और ना ही पर्यावरण में सिगरेट का अत्यधिक धुंआ छोड़ा जा रहा है। इसके साथ ही पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश ने भी पेड़-पौधों के पत्तों और वायु में तैर रहे धुलकण को धो दिया है। इस वजह से भी वातावरण साफ हो गया है। 

डब्ल्यूएचओ के निर्धारित मानकों से घटी प्रदूषण की मात्रा 

प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान समय में कोलकाता के वायु में प्रदूषण की मात्रा डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित प्रदूषण से भी कम है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार वायु में श्वासवाहित धुलकण की मात्रा का 25 माईक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर यानी पीएम 2.5 होना, स्वच्छ वायु की निशानी होती है। इस आकार के धुलकण का आकार एक बाल की मोटाई से भी कई गुना कम होती है जिसे नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता है। इसे देखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माईक्रोस्कोप की जरुरत पड़ती है। सौमेन्द्र मोहन घोष का कहना है कि वर्तमान समय में महानगर के अलग-अलग इलाकों में धुलकण की मात्रा 15-18 माईक्रोग्राम के अंदर है। यह मात्रा डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित मानक से भी 20 प्रतिशत तक कम है। इस वजह से स्वच्छ वातारण के मामले में कोलकाता को विश्व के सबसे अच्छे शहरों में से एक माना जा रहा है। भारत में कोलकाता का स्थान फिलहाल सबसे ऊपर है। 

साफ पर्यावरण में कोरोना वायरस से लड़ने की मिलेगी शक्ति

प्रदूषित वायु में मौजूद अधिक मात्रा के धुलकण हमारी सांसों के साथ हमारे गले, फेंफड़े और दिल में जाकर उन पर बुरा असर डालते हैं। डब्ल्यूएचओ ने भी कहा है कि कोरोना का प्रकोप उन शहरों में अधिक देखने को मिल रहा है, जहां प्रदूषण की मात्रा अधिक है। क्योंकि यदि किसी व्यक्ति के फेंफड़े या दिल में कोई समस्या है तो यह वायरस आसानी से उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश भी कर जाएगा और शरीर के अंदरुनी हिस्सों पर अपना असर दिखाना भी शुरू कर देगा। जिस वजह से प्रभावित व्यक्ति की मृत्यु की संभावना भी काफी बढ़ जाती है। पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि वातावरण में धुलकण की मात्रा कम रहेगी तो हमारे फेंफड़े और दिल भी स्वस्थ रहेंगे और हमारे शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। इस वजह से कोरोना को हराना आसान हो जाएगा। अधिकांश डॉक्टरों ने भी कोरोना से लड़ने के लिए शरीर में रोग-प्रतिरोधक की मात्रा को बढ़ाने की सलाह दी है।

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