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कोरोना को हराकर लौटे ‘कोरोना वॉरियर्स ‘ की कहानी, उन्हीं की जुबानी
समाज को देना होगा साथ, जब साथ आएगा समाज तभी तो बढ़ेगा समाज
बबीता माली
कोलकाता, समाज्ञा : कोरोना से लड़ने के लिए खुद को पूरी तरह तैयार रखना होगा। कोरोना को खत्म नहीं किया जा सकता है लेकिन उससे लड़ा जा सकता है। कोरोना कोई अभिशाप नहीं है। संतुलित आहार, व्यायाम और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने से ही इस जानलेवा खतरनाक बीमारी से लड़ा जा सकता है और इससे स्वस्थ्य होकर लौटा जा सकता हैं। यह कहना है हमारे कोरोना वॉरियर्स यानी कोलकाता पुलिस के एक ऑफिसर का जो कोरोना को मात देकर अपने घर लौटे। उनकी तरह ही कई और पुलिसकर्मी कोरोना को हराकर लौटे हैं। इनमें से स्वस्थ्य होकर लौटे कुछ कोरोना वॉरियर्स से बात कर जानने की कोशिश की गई कि उन्हें इस दौरान किन- किन परेशानियों और किस प्रकार के दर्द से गुजरना पड़ा। आम नागरिक के साथ ही कोलकाता पुलिस में भी कोरोना का प्रकोप बढ़ा है मगर रिकवरी रेट में भी बढ़ोतरी हुई है।
अम्फान में बचाव कार्य करने के बाद तबीयत बिगड़ी, दर्द ऐसा जो कभी नहीं हुआ था जिंदगी में
कोरोना को मात देकर लौटे कोलकाता पुलिस के एक ऑफिसर ने बताया कि पता नहीं कैसे और किसके संपर्क में आने के बाद वे कोरोना पॉजिटिव हुए थे। उन्होंने बताया कि अम्फान के दौरान लोगों को शेल्टर में पहुंचाने से लेकर पेड़ काटने के काम में वे व्यस्त थे। हालांकि इस दौरान उन्हें खुद की सुरक्षा का ध्यान नहीं था। २० मई यानी अम्फान के दूसरे दिन से उनकी तबीयत कुछ बिगड़ने लगी। इसके बाद २१ मई को हल्का बुखार आया। २२ मई को बुखार और ज्यादा तेज हो गया। बुखार के साथ ही साथ पूरे शरीर में दर्द, पेट खराब और सीने में हल्की दर्द होने लगी। इसके बाद वे एक निजी अस्पताल में डॉक्टर से मिले। डॉक्टर ने उन्हें कुछ हैवी डोज की दवाइयां दी और २३ मई को उनका कोरोना टेस्ट किया गया। उन्होंने बताया कि लॉक डाउन के बाद से ही वे अपने घर पर अलग कमरे में आइसोलेटेड रहते थे इस बाबत घर के लोग उनके संपर्क में नहीं आए थे। दरअसल, पुलिस के अधिकतर ऑफिसर और कर्मी भी ड्यूटी के कारण घर पर परिजनों से दूर रहते हैं ताकि उनकी वजह से उनके परिजन ना संक्रमित हो जाए। उन्होंने बताया कि इस दौरान वे इतने ज्यादा कष्ट से गुज़रे हैं, जिसे बयां करने में भी वह सिहर उठते हैं। शरीर में इतना दर्द पहले कभी नहीं हुआ था। चूंकि वे नॉन स्मोकर है, इस बाबत उन्हें सांस कष्ट नहीं था और उनकी ऑक्सीजन सेचुरेशन भी बेहतर थी। घर पर ही रहकर वे दवाइयां खा रहे थे मगर खाना उनके गले से नहीं उतर रहा था। इस दौरान वे केवल ओआरएस युक्त पानी पिया करते थे। २४ मई को रिपोर्ट आई तो पता चला कि वे कोरोना पॉजिटिव है। २५ मई को उन्हें बाईपास स्थित एक निजी कोविड अस्पताल में भर्ती कराया गया।
उन्हें ब्लड क्लोट यानी खून जमने की समस्या होने लगी
कोरोना के कारण उनमें एक नया लक्षण सामने आया था। उनके इंटरनल पार्ट में ब्लड क्लॉट होने लगा था मगर डॉक्टरों ने उनका इलाज शुरू किया। हालांकि वे पहले से ही खुद से इलाज करवा रहे थे जिसके कारण उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही थी। इस बाबत डॉक्टर के इलाज का उन पर असर हो रहा था।
सुबह होती थी रात के २.३० से ३ बजे, शुरू हो जाता था दिनचर्या
उन्होंने बताया कि सारी रात डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ मरीजों की देखभाल में लगे रहते थे। बीमारी के कारण मरीजों को नींद भी नहीं आती थी इस बाबत सुबह बहुत जल्दी होता था अस्पताल में। रात के २.३०- ३ बजे से ही सुबह का दिनचर्या शुरू हो जाता था। हर एक – एक घंटे में ज्वर मापने से लेकर ऑक्सीजन सेचुरेशन का लेवल मापा जाता था। उन्होंने बताया कि अस्पताल में इलाज के दौरान २५ मई से २९ मई तक वे खाना नहीं खा पा रहे थे। मगर इसके बाद जबसे वे खाना शुरू किए उनकी हालत में सुधार आने लगा। करीब दस दिनों तक अस्पताल में इलाज किया गया।
संतुलित आहार और व्यायाम से कोरोना से लड़ना आसान
उन्होंने यह भी बताया कि कोरोना से लड़ने के लिए जमकर संतुलित आहार का सेवन बेहद जरूरी है। दूध, फल, पोहा, सुजी और जितनी भी प्रोटीन और विटामिन युक्त भोजन है सभी को आहार में शामिल करना जरूरी है। साथ ही व्यायाम इसमें रामबाण इलाज है। लोगों को इन दो चीजों का ध्यान रखना होगा, इससे ही कोरोना को हराया जा सकता है। इसके अलावा सुरक्षात्मक साधनों यानी मास्क और कम से कम ६ फीट की दूरी रहने से कोरोना संक्रमित होने से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि फिलहाल वे घर आ चुके हैं। अभी १४ दिनों तक होमक्वारेंटाइन पर है।
समाज का नजरिया मानसिक रूप से पीड़ा देती है
कुछ कोरोना संक्रमितों और कोरोना से लड़कर वापस लौटे लोगों का समाज को लेकर जो अनुभव रहा वह बेहद दुखदायक रहा। कुछ ने कहा कि कोरोना बीमारी है ना कि अभिशाप। मगर समाज की बेरुखी के कारण मानसिक तौर पर आघात पहुंचता हैं। कुछ ने यह भी बताया कि कोरोना पॉजिटिव पाए जाने वाले घरों के इर्द – गिर्द भी लोग घूमना नहीं चाहते हैं। पानी सप्लाई से लेकर कचरा उठाने वाला और पेपर देने वाले भी कोरोना मरीज़ के परिजनों को दरकिनार कर रहें हैं। आज सरकार लोगों से रोग से दूर रहने की अपील कर रही हैं ना कि रोगी से बावजूद इसके समाज के लोग इस तरह का नजरिया रख रहे हैं। मगर समाज का रवैया जिस तरह से इन मरीजों के प्रति है वह बेहद अमानवीय है।