कोई सड़कछाप निर्देशक नहीं हूं मैं : विधु विनोद चोपड़ा

मौमिता भट्टाचार्य

श्रीनगर में जन्म और फिर काफी सालों बाद वापस कश्मीर की वादियों में जाना लेकिन इस बार फिल्म के बहाने, एक निर्देशक के तौर पर काफी भावुक कर देने वाला पल होता है। इस पल को जीया है बॉलीवुड की पहली श्रेणी के प्रतिष्ठित निर्देशकों में से एक विधु विनोद चोपड़ा ने। अपनी फिल्म ‘शिकारा’ के प्रमोशन के सिलसिले में महानगर आये चोपड़ा से एक 5 सितारा होटल में हमारी मुलाकात हुई। जिस समय हम उनसे मिलने पहुंचे तब वे कोलकाता की प्रसिद्ध मिठाईयों का स्वाद ले रहे थे। इसके बाद विधु विनोद चोपड़ा से बातचीत का सिलसिला चल निकला। इस दौरान उन्होंने ना सिर्फ अपनी फिल्म बल्कि काम करने के तरीके के बारे में भी बेबाकी से बातचीत की।

  • फिल्म ‘शिकारा’ को बनाना आपके लिए बेहद भावुक करने वाला था। क्या कहेंगे?

हां, यह मेरे लिए बहुत भावुक करने वाला सफर था। यह फिल्म शायद मेरे लिए सबसे अधिक भावुक करने वाला था क्योंकि इसकी स्क्रिप्ट बनाने में मुझे 11 साल का समय लग गया। सबसे अधिक जिस चीज ने मुझे दर्द दिया कि मेरी ‘मदर स्टोरी’ और लाखों कश्मीरियों की कहानी को 11 साल देने के बाद एक निर्देशक के तौर पर मेरी काबिलीयत पर प्रश्न उठाया गया। मैं इस फिल्म की पहले दिन की कमायी करीब 30 लाख रूपये मानकर चल रहा था जहां मेरी पिछली कई फिल्मों की पहले दिन की कमायी 30-40 करोड़ होती है। लोगों ने मेरी काबीलियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि मैं विधु विनोद चोपड़ा ने एक फिल्म को 11 साल का समय क्यों दे दिया। मेरी दूसरी फिल्मों की पहले दिन की कमायी 30-40 करोड़ रूपये होती है और ‘शिकारा’ के लिए हमने पहले दिन की कमायी केवल 30 लाख रूपये की ही उम्मीद की थी। सबसे चौंकाने वाली बात है कि हम पहले दिन की कमायी जहां केवल 30 लाख उम्मीद कर रहे थे लेकिन हमारी फिल्म ने पहले दिन ही 1 करोड़ 20 लाख की कमायी कर ली।

  • फिल्म की कहानी को लिखते समय या फिल्म का निर्देशन करते समय आप कभी भावुक हुए?

इसे फिल्माते समय नहीं लेकिन जब मैंने पहली बार इस फिल्म को बड़े पर्दे पर देखा, तब मैं भावुक हो गया। जब यह फिल्म पूरी तरह तैयार हो गयी उस समय मैं न्यूजीलैंड में वरिष्ठ निर्देशक जेम्स कैमरून के साथ था। थिएटर में मैं सबसे पीछे बैठा था और वे एकदम सामने बैठे थे। फिल्म देखने के बाद वह मेरे पास चलकर आये, इसके बाद मेरा गला भर गया। उन्होंने मुझसे कहा कि यह मेरी अब तक की सबसे पसंदीदा फिल्म है। इसके बाद मैं भावुक हो गया।

  • क तरफ जेम्स कैमरून और अमिर खान जैसे कलाकार ‘शिकारा’ की तारिफ कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ महिलाएं, जो कश्मीरी पंडित हैं, ने फिल्म देखकर आरोप लगाया कि आपने फिल्म में कश्मीरी पंडितों की समस्याओं का सही चित्रांकण नहीं किया।

उस समय थिएटर में करीब 300 लोग थे, जिनमें से 288 लोग फिल्म की तारिफ करते हुए तालियां बजा रहे थे। जब उक्त महिला अपनी नाराजगी जता कर भावुक हो गयी तब मैंने कहा था कि कोई इनके लिए भी तालियां बजा दो, क्योंकि उन्होंने केवल अपनी बात कही थी। अगर 100 लोगों में से 99 लोग आपके काम की तारिफ कर रहे हो और कोई 1 कह रहा हो कि आपका काम अच्छा नहीं है, तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। एक और बात है कि सोशल मीडिया के कारण लोग सोच-समझकर किसी फिल्म को अच्छा या बुरा कहने लगते हैं।

  • वर्तमान समय में कश्मीर का मुद्दा लोगों की जुबान पर है। क्या फिल्म को इसी समय रिलीज करना किसी योजना का हिस्सा है?

यह फिल्म पिछले साल सितंबर में ही तैयार हो चुकी थी और हम इसे नवंबर में रिलीज करना चाहते थे। इसका रिलीज डेट 8 नवंबर की घोषणा भी हो चुकी थी। आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि वह मैं ही था जिसने कहा था कि इस फिल्म को अभी रिलीज नहीं करते हैं। लोग कहेंगे कि हम जान-बूझकर कश्मीरी पंडितों पर आधारित फिल्म को उस समय रिलीज कर रहे हैं जब जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को समाप्त किया गया है। मैं तभी कहा था कि इसे फरवरी में रिलीज करते हैं।

  • फिल्म के माध्यम से आप क्या संदेश देना चाहते हैं?

इसे जानने के लिए आपको थिएटर में जाना पड़ेगा। मेरे लिए हिंसा का कोई चेहरा नहीं होता है। पूरी फिल्म में आपको कोई एक चेहरा नहीं दिखता है। कई परछाईयां दिखेंगी। मैं कोई सड़कछाप निर्देशक नहीं हूं। मैं किसी के पैरों का क्लोज अप दिखा कर अपनी फिल्म नहीं बेच सकता। जो लोग ऐसा कर सकते हैं, करें। मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं एक कलाकार हूं और मेरा काम अपने काम के माध्यम से संदेश देना होता है। जब हम कहते हैं ‘ऑल इज वेल’, हमारी फिल्म भी वहीं कहता है, जब हम कहते हैं ‘काबिल बनो, सफलता जरूर मिलेगी’ तब हमारी फिल्म कहती है ‘थ्री इडियट्स’। हमारी इस फिल्म का संदेश ही हमारी फिल्म है।

  • फिल्म को बनाते समय क्या आपके मन में यह बात थी कि आपको विरोध का सामना करना पड़ेगा?

बिल्कुल नहीं (ठहाका लगाते हुए)। मुझे तो लगा था कि फुल मिलेंगे, हार पहनाएंगे। मुझे लगा था भारत रत्न तो मिल ही जाएगा। एक आदमी जिसने 1956 से 1967 तक अपनी जिन्दगी के 11 साल एक फिल्म में लगा देता है और उसके बाद उसकी काबिलियत पर सवाल किया जाता है।

  • आदिल खान और सादिया को क्या सोचकर आपने चुना था?

हमने करीब 2000 लोगों को देखा था जिसके बाद इन्हें चुना गया। हमने एक ही चीज ढुंढ़ी थी, अभिनय क्षमता। आदिल भोपाल से हैं और सादिया कश्मीरी है। आदिल 4 महीनों के लिए सीखने-समझने के लिए कश्मीर गये थे। उन दोनों ने 2 साल के लिए वर्कशॉप किया और दिन के 8 घंटे इस वर्कशॉप को देने पड़ते थे।

  • ऋत्विक घटक के साथ अपने रिश्तों के बारे में बताएं।

आह! उस बारे में तो पूछिये ही मत। (आंखें खुशी से चमकते हुए) जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा। मैंने कहा कि विनोद कुमार चोपड़ा। तब उन्होंने कहा था कि विनोद कोई नाम होता है। मेरा नाम देखो ऋत्विक घटक (बुलंद आवाज में)। मैंने तब उनसे कहा था कि दादा ये मेरा नाम है। इसपर ऋत्विक दा ने कहा कि तुम्हारी मां तुम्हें विधु नाम से बुलाती है ना, तुम्हारा नाम विधु विनोद चोपड़ा होगा।

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