तृणमूल का पलाटवार
कोलकाता : राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने संविधान दिवस पर विधानसभा में आयोजित हुए कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के व्यवहार पर नाराजगी जताई है। उन्होंने बुधवार को ट्वीट कर लिखा ‘मुख्यमंत्री के व्यवहार से स्तब्ध हूं। उन्होंने किसी तरह का शिष्टाचार नहीं दिखाया जबकि विधानसभा में उपस्थित विधायकों ने मेरा अभिवादन किया। अमित मित्रा, पार्थ चटर्जी, अब्दुल मन्नान समेत सभी ने मेरे प्रति सम्मान जताया लेकिन मुख्यमंत्री का व्यवहार सही नहीं था।’
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के उस आरोप का भी खंडन किया जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्यपाल ने तनिक भी शिष्टाचार नहीं दिखाया। उन्होंने लिखा ‘मैंने शिष्टाचार दिखाने में किसी तरह की कृपणता नहीं की। मुख्यमंत्री के प्रति मेरी गहरी श्रद्धा है लेकिन उन्होंने आशानुरूप व्यवहार नहीं किया।’ ट्वीट के जरिए राज्यपाल ने सरकारी कर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकारी कर्मी कानून व संविधान के दायरे में आते हैं। उन्हें कानून व संविधान से बाहर जाकर काम नहीं करना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर राजभवन में आयोजित संविधान दिवस में राज्य सरकार के किसी भी प्रतिनिधि के नहीं पहुंचने पर राज्यपाल नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने लिखा कि एक महीना पहले से ही राजभवन में संविधान दिवस का आयोजन किया गया था। इसके लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत अन्य मंत्रियों और अधिकारियों को आमंत्रित किया गया था लेकिन मंगलवार को आयोजित हुए इस कार्यक्रम में सरकार का कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ।
निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को छड़ी दिखा रहे हैं राज्यपाल : पार्थ
दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस के महासचिव सह राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने पलटवार करते हुए बुधवार को विधानसभा के सत्र में कहा कि राज्यपाल एक लोकप्रिय सरकार को परेशान करने की कोशिश कर रहे हैं। एक निर्वाचित सरकार के प्रतिनिधि की उपेक्षा करना क्या असंवैधानिक नहीं है? राज्यपाल लाट साहब की तरह बर्ताव कर रहे हैं। वे निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को छड़ी दिखा रहे हैं। यह कितना उचित है, इसपर विचार किया जाना चाहिए। पार्थ ने राज्यपाल पद के औचित्य पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि अभी भी राज्यपाल का पद होना जरुरी है? पिछले तीन वर्षों में राजभवन का खर्च तीन गुना बढ़ा है। दूसरी तरफ पूर्व तृणमूल सांसद दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि स्वतंत्र भारत में भी अगर राज्यपाल ब्रिटिश जमाने के लाट साहब की तरह बर्ताव करेंगे तो मानना पड़ेगा कि देश में संवैधानिक संकट मंडरा रहा है।