हावड़ा में बीजेपी को मिलेगा तृणमूल के उथल-पुथल राजनीति का फायदा!

2021 विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल में पड़ गई दरार
दो मंत्रियों अरूप रॉय और राजीव बनर्जी के बीच का विवाद है उजागर
बाली के कई पूर्व पार्षद हैं अपनी ही विधायक के खिलाफ

हावड़ा, समाज्ञा : पश्‍चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव यूं तो अभी कुछ महीने दूर हैं लेकिन इसकी आहट अभी से शुरू हो गई है। मई 2021 में राज्य की विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है इससे पहले ही यहां पर चुनाव संपन्न करा लिए जाएंगे। 294 सीटों के लिए होने वाला ये विधानसभा चुनाव इस बार खासा मायने रखता है। वहीं इन चुनावों के मद्देनजर भाजपा अपनी पूरी ताकत से मैदान में उतरी है। तृणमूल भी बंगाल में अपनी एक इंच जमीन भी भाजपा को देने के मूड में नहीं है। इस बीच तृणमूल के कद्दावर मंत्री व विधायकों का पार्टी के खिलाफ बागी तेवर, पार्टी के छोड़कर भाजपा में शामिल होना और पार्टी के ही एक दूसरे नेताओं पर खुलकर कटाक्ष करना तृणमूल की मुश्किलें बढ़ा रही है। राज्य के विभिन्न जिलों से तृणमूल के मंत्रियों एवं विधायकों के बिगड़े बोल व पार्टी के खिलाफ बयानबाजी सामने आ रही है। यहीं हाल हावड़ा की राजनीति का भी है। हावड़ा के हेविवेट मंत्री अरूप रॉय और वन मंत्री राजीव बनर्जी के बीच का विवाद खुलकर सामने आ गया है। वहीं बाली में कई पूर्व पार्षद अपनी ही विधायक वैशाली डालमिया के खिलाफ हो गए हैं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए हावड़ा में भी तृणमूल की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। हाल में चल रहे तृणमूल की आपसी विवाद के बाद एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या तृणमूल नेताओं के आपसी विवाद की सीढ़ी पर चढ़कर भाजपा हावड़ा की सभी विधानसभा सीटों को जीत सकती है?

हावड़ा तृणमूल के बिगड़ते समीकरण

2021 में विधानसभा चुनाव से पहले विभिन्न जिलों में तृणमूल का आपसी दव्ंद सामने आ रहा है। ऐसी कुछ परिस्थिति हावड़ा में भी देखने को मिल रही है। यहां अरूप रॉय के हावड़ा तृणमूल के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद एक ओर अरूप रॉय और राजीव बनर्जी आमने सामने हो गये हैं। इधर, मंत्री लक्ष्मी रतन शुक्ला को तृणमूल हावड़ा के अध्यक्ष पद मिलने के बाद से अरूप रॉय से भी उनके रिश्ते कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। तीनों मंत्री एक ही मुद्दे पर अलग-अलग रैलियां निकाल रहे हैं जो उनके आपसी विवाद को साफ उजागर कर रहा है। ऐसे में पार्टी के आलाकमान के माथे पर चिंता की लकीरें आ गयी है। इन लकीरों को हटाने के लिए तृणमूल का उच्च नेतृत्व लगातार कवायद में जुटा हुआ है क्योंकि पार्टी 2021 की लड़ाई में अपनी ओर से कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसका उपाय कैसे निकलेगा, इसके लिए तृणमूल युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभिषेक बनर्जी व रणनीतिकार प्रशांत किशोर रणनीति बनाने में जुट हुए हैं। उन्होंने मंत्री अरूप राय, राजीव बनर्जी व लक्ष्मीरतन शुक्ला के साथ मिलकर एक बैठक भी की। इसमें तय किया गया कि सभी मिल जुलकर पार्टी के लिए काम करेंगे क्योंकि जिस प्रकार तीनों नेताओं में आपसी दव्ंद है उससे विधानसभा में हावड़ा में तृणमूल के कई सीटों पर हार का खतरा मंडरा सकता है। हालांकि इसका कुछ खास परिणाम नहीं निकला। हावड़ा के दोनों मंत्री अब खुलकर एक दूसरे के सामने आ गए हैं। मीडिया के सामने अक्सर दोनों एक दूसरे पर कटाक्ष करते दिखाई देते हैं।
इधर, बाली के कई पूर्व पार्षद विधायक वैशाली डालमिया के खिलाफ हो गए हैं। गत कुछ दिन पहले बाली के वार्ड नंबर 57 के पूर्व पार्षद तफजील अहमद ने विधायक पर भ्रष्टाचार, दुर्नीति समेत विभिन्न आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर दिया। इसके बाद से बाली तृणमूल का भी बवाल उजागर हो गया। बाली में वैशाली डालमिया को बाहरी बताकर इस विधानसभा में स्थानीय नेता को उम्मीदवार बनाने की मांग को लेकर पोस्टर भी लगा दिए गये।
दूसरी ओर, शुभेंदू अधिकारी के पार्टी से इस्तिफा देने के बाद, शिवुपर के विधायक जटू लाहिड़ी ने भी पार्टी के खिलाफ बागी तेवर अपना लिये। शिवपुर विधायक ने शुभेंदू अधिकारी के पार्टी छोड़ने का समर्थन करते हुए कह डाला कि प्रशांत किशोर के आने के बाद से पार्टी को नुकसान हुआ है। अगर पीके रहते हैं तो ऐसे ही मंत्री व विधायक पार्टी छोड़कर चले जाएंगे।

क्या कहना है हावड़ा तृणमूल की प्रवक्ता का

बाली की विधायक और हावड़ा तृणमूल की प्रवक्ता वैशाली डालमिया ने समाज्ञा से बातचीत में स्वीकारा कि आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी में उठे इस आपसी विवाद की लहर से पार्टी को बहुत नुकसान पहुंच सकता हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव जैसे महत्वपूर्ण समय में पार्टी को एक परिवार की तरह मिलकर काम करना चाहिए ना कि आपस में विवाद करके एक-दूसरे के खिलाफ हो जाए। इससे पार्टी कमजोर पड़ सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अगर भाजपा सोचती है कि वह हमारे आपसी विवाद का फायदा उठाकर चुनाव जीत सकती है तो यह उनकी गलतफहमी है। मैने हमेशा कहा कि जनता सब जानती है। जनता उन्हीं को वोट देती है जो काम करते हैं और आम्फान व लॉकडाउन जैसे मुश्किल वक्त में उनके साथ खड़ी रही।

बंगाल में बीजेपी का भविष्य

2014 के आम चुनाव में बंगाल में मात्र 2 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने इस बार 18 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है। अगर लोकसभा चुनाव के नतीजों का विश्‍लेषण करें तो विधानसभा की कुल 294 सीटों में से बीजेपी ने लगभग 130 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई है। वहीं सत्तारूढ दल टीएमसी को मात्र 158 सीटों पर बढ़त मिली है। ऐसे में जब दो साल बाद 2021 में पश्‍चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहा है तो वहां बीजेपी और टीएमसी के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिलना तय है। जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव परिणाम देखने के बाद ये कहा जा सकता है कि बीजेपी 2021 में पश्‍चिम बंगाल में अपनी सरकार बना सकती है।

हावड़ा विधानसभा सीटों पर एक नजर

हावड़ा लोकसभा सीट के अंतर्गत कुल 7 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें बाली, हावड़ा उत्तर, हावड़ा मध्य, शिवपुर, हावड़ा दक्षिण, पांचला और सांकराईल शामिल हैं। सांकराईल विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2016 विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने सभी सातों विधानसभा सीट पर विरोधी पार्टी का सुपड़ा साफ करते हुए अपना कब्जा जमाया। लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव में राज्य की अन्य सीटों की तरह हावड़ा लोकसभा सीट पर भी बीजेपी ने तृणमूल को कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि हावड़ा लोकसभा सीट पर बीजेपी अपना कब्जा नहीं जमा सकी और एक बार फिर तृणमूल के प्रसून बनर्जी ने सीट पर जीत हासिल कर ली। लेकिन वोट शेयर में उत्तर हावड़ा व बाली विधानसभा सीट पर बीजेपी ने तृणमूल को पछाड़ दिया था। ऐसे में भाजपाई कहीं ना कहीं आश्‍वस्त है कि हावड़ा की उत्तर हावड़ा और बाली विधानसभा सीट पर उनकी जीत पक्की है। मालूम हो कि साल 2016 के विधानसभा चुनाव में जहां तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और भाजपा को 10.16 फीसदी वोट के साथ सिर्फ 3 सीटें ही मिली थीं। वहीं, 2019 आते-आते परिस्थितियां बदल गईं और लोकसभा चुनाव में भाजपा पश्‍चिम बंगाल की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बता दें कि पश्‍चिम बंगाल में कुल 294 सीटें हैं, जिसमें से 2 सीटों पर सदस्यों को मनोनित किया जाता है। ऐसे में चुनाव सिर्फ 292 सीटों पर ही होता है।

क्या कहना है हावड़ा भाजपा अध्यक्ष का

हावड़ा भाजपा अध्यक्ष सुरोजीत साहा ने कहा कि तृणमूल का वैसे भी अंत समय आ गया है तो हमें उनके आपसी झगड़ों का फायदा उठाने की कोई जरूरत ही नहीं है। राज्य की जनता तृणमूल की दुर्नीतियों से त्रस्त हो चुकी है। तृणमूल ने इतने सालों तक जनता के लिए कोई लाभकारी योजना नहीं निकाली और ना ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाए गए योजनाओं का यहां की जनता को लाभ मिलने दिया। अब जब तृणमूल को आभास हो चुका है कि उनके जाने का अंत समय आ गया है तो वे द्वारे-द्वारे सरकार अभियान चला रहे हैं। इसका कोई लाभ नहीं होने वाला है। वे केवल आपस में लड़ते ही रह जाएंगे। भाजपा को उनके विवाद या पार्टी छोड़ने से कोई मतलब नहीं है। भाजपा का संगठन बहुत बड़ा है, यह व्यक्ति विशेष पार्टी नहीं है। इसलिए हमें उनके विवाद का फायदा लेने की आवश्कता नहीं है।

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