ईंट का जवाब पत्थर से देने की शिक्षा हमारी नहीं है : पार्थ

राज्यपाल के ‘जैसे को तैसा’ वाले बयान का मंत्री ने दिया जवाब

कोलकाता : यदि कोई हमें ईंट मारता है, तो उसे पत्थर मारने की शिक्षा हमें नहीं दी गयी है। राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने राज्यपाल के जगदीप धनखड़ के ‘जैसे को तैसा’ वाले बयान का जवाब देते हुए उक्त बातें कही। शिक्षा मंत्री ने दावा किया कि स्कूल और उच्च शिक्षा विभाग की सफलता से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपकर हमने उनकी मदद ही की है। शनिवार को राज्यपाल और शिक्षा मंत्री के बीच पूरे दिन ट्वीट पर ट्वीट करने का दौर जारी रहा। गत 26 दिसंबर को राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने उस पत्र को ट्वीटर पर साझा किया जिसे उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजा था। इसका जवाब देते हुए 28 दिसंबर को शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने एक ट्वीट किया जिसका जवाब राज्यपाल ने फिर एक ट्वीट करके दिया। अपने ट्वीट में राज्यपाल ने लिखा कि मुझे आश्चर्य हो रहा है। माननिय मुख्यमंत्री के साथ संपर्क ना होने के कारण ही मुझे यह कदम उठाना पड़ा। माननिय मंत्री देखे कि मुख्यमंत्री का संपर्क कई चैनलों के साथ है। यह समय ‘जैसे को तैसा’ के लिए नहीं है। मुझे उम्मीद है कि मुख्यमंत्री ने जैसा निर्देश दिया है उसके अनुरूप ही आगे बढ़ेंगे। 29 दिसंबर को संवाददाताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए पार्थ चटर्जी ने कहा कि मैं खुद भी पत्थर खाना नहीं चाहता हूं और ना ही किसी को पत्थर मारना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि सच जानने का अधिकार तो सबके पास है। हमारी प्रिय मुख्यमंत्री के पत्र को यदि ट्वीटर पर स्थान नहीं दिया जाता तो शायद मैं भी यह नहीं करता। राज्यपाल ने कहा कि ऐसी खबरें तो टीवी पर भी दिखा रही है। मैंने उस बात को अस्वीकार तो नहीं किया है। ये खबरें तो टीवी की ही है। प्रशासनिक व सांविधानिक प्रधान के बीच का संपर्क कभी भी लोगों के सामने आना उचित नहीं है। पार्थ ने कहा कि राज्यपाल तो हमें अपना अभिभावक कहते हैं। इसलिए हमें लगा कि वे हमेशा ऐसी बातें करते हैं, इसका अर्थ यह है कि उनके पास कोई आवश्यक तथ्य नहीं है या उनके सामने तथ्य को लाया नहीं जा रहा है। इसीलिए ट्वीटर पर उन्हें पूरी जानकारी दे दी। हम हर बैठक से पहले राज्यपाल को पूरी जानकारी दे देते हैं, ताकि वे तैयारी कर सकें। हम तो उनकी मदद ही करते हैं। यह जैसे को तैसा क्यों होगा। यह तो अपने-अपने नजरिये की बात है। राज्यपाल ने केवल उच्च शिक्षा के बारे में कहा था, किन्तु हमने तो उन्हें स्कूल शिक्षा समेत पूरे शिक्षा विभाग का ही सक्सेस एंड अचिवमेंट का दोनों रिपोर्ट उन्हें भेजा है। स्कूल शिक्षा से जुड़े मामले उनके अधिकार-क्षेत्र में नहीं आता है, इसके बावजूद राज्यपाल के तौर पर वे रिपोर्ट देख ही सकते हैं। यह तो ऐसा लग रहा है जैसे आधा ग्लास पानी मिलेगा तभी प्यास बुझेगी, पूरा ग्लास पानी मिलेगा तो प्यास नहीं बुझेगी, जैसी बात हो गयी।

जिस दिन बुलाएंगे राज्यपाल जाउंगा मिलने

पार्थ चटर्जी ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि उनका (राज्यपाल) कहना है कि शिक्षा विभाग के डीएनए की जांच होनी चाहिए। उन्होंने यह मान लिया है कि वे राज्यपाल के पद पर आसिन है, इसलिए वे आचार्य हैं। आचार्य यदि हर मामले में सरकार को बिना बताए निर्णय लेंगे, ऐसा तो यहां का नियम नहीं था। राजभवन के साथ सरकार का जो रिश्ता बना था, उसे बनाए रखना उचित था। मैं इस बारे में और कुछ नहीं कहना चाहता हूं। मैंने जवाब देते हुए ट्वीट किया था, जैसे को तैसा नहीं बोला था। वे यदि इसे जैसे को तैसा मानते हैं, तो यह दुर्भाग्य की बात है। हम ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देते हैं। यह हमारी शिक्षा नहीं है। यदि कोई असत्य बोलता है तो वहां सत्य बोलना हमारी शिक्षा है। पार्थ ने कहा कि राज्यपाल जिस दिन बोलेंगे कि वे एक या दो दिन मुझसे मिलना चाहते हैं, मैं इस बारे में सोचुंगा और उनसे मिलने जाउंगा। सीएम ने भी कहा है कि वे उनसे मिलेंगी। मैंने वजह बता ही दी है कि वह उनसे क्यों मिलना चाहती हैं। इसके बाद भी यदि राज्यपाल कुछ कहना चाहते हैं या मुझसे मिलना चाहते हैं तो मैं उनसे मिलूंगा। औपचारिकता को मैंने अपनी तरफ से समाप्त नहीं किया है। औपचारिकता तो हमारी संस्कृति का हिस्सा है। पार्थ का कहना है कि इससे पहले किसी भी राज्यपाल को ट्वीट करते हुए मैंने नहीं देखा था। राजभवन में जाने की आदत तो मुझे हमेशा से ही है। शुरू-शुरू में जब मैं देखता था कि वे ट्वीट कर रहे हैं, तो सोचता था कि हो ही सकता है। इसमें कौन सी बड़ी बात है। लेकिन बाद में राज्य के युवा और जो लोग सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं वे सोच रहे हैं कि सरकार जवाब क्यों नहीं दे रही है। इसलिए मैंने ट्वीट पर जवाब देना शुरू किया है।

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