लाइसेंस युक्त डीबीबीएल और एसबीबीएल बंदूकें अवैध तरीके से पहुंच रहे हैं समाजविरोधियों तक

  • आखिर किससे सांठ-गांठ कर हथियारों के तस्करों के हाथ लग रहें हैं लाइसेंसी बंदूकें?
  • वेस्ट बंगाल एसटीएफ जुटी जांच में

कोलकाता : बंगाल में बार-बार हथियारों की बरामदगी को लेकर वेस्ट बंगाल स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने एक बड़ा खुलासा किया है। सूत्रों की मानें तो बंगाल में अपराधिक गतिविधियों पर नजर और आतंकियों का खातमा करने के लिए ही राज्य सरकार ने बंगाल एसटीएफ की नींव रखी थी। हालांकि कोलकाता पुलिस के अंतर्गत एसटीएफ है जो कोलकाता में आतंकी गतिविधियों पर नजर रखती है। मगर राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में ही बंगाल एसटीएफ की नींव रखी ताकि बंगाल में आतंकी से लेकर हर संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखी जा सकें। सूत्रों का कहना है कि बंगाल एसटीएफ ने बंगाल में आए दिन हथियारों की इतनी संख्या में बरामदगी को लेकर खुलासा करते हुए बताया कि इन हथियारों में अधिकतर डबल बैरल गन (डीबीबीएल) और सिंगल बैरल गन (एसबीबीएल) हैं। मगर ये हथियार यहां के कारखानों या अन्य राज्यों से नहीं मंगवाये जा रहे हैं, बल्कि लाइसेंस युक्त डीबीबीएल और एसबीबीएल को अवैध तरीके से हथियार तस्कर हासिल कर उसे समाजविरोधियों तक पहुंचा रहे हैं। इसी कारण ही जिलों मेंं लोगों में दहशत फैलता जा रहा हैं। क्योंकि झड़प के दौरान समाजविरोधी तुरंत ही हथियार निकाल ले रहे हैं और लोगों को मौत के घाट उतार दे रहे हैं। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बड़ी संख्या में लाइसेंसी बंदूकें गायब हैं लेकिन इसके बारे में कोई जवाब किसी के पास नहीं है।

आखिर कैसे हुआ खुलासा

सूत्रों ने बताया कि रविवार की सुबह वेस्ट बंगाल एसटीएफ की टीम ने स्थानीय थाने के साथ संयुक्त रूप से अभियान चलाकर पुरुलिया जिले के केंदा ग्राम के पुरुलिया-मानबाजार पीच रोड इलाके में गुप्त सूचना के आधार पर एक सफेद रंग की अम्बेसडर कार को रोका। कार की सीट की तलाशी लेने पर एक डीबीबीएल गन बरामद किया गया लेकिन उसका कोई लाइसेंस नहीं था। मौके से ही दो लोगों को गिरफ्तार किया गया। अभियुक्तों के नाम चंडी कर्मकार और माथुर पासवान हैं। सूत्रों ने बताया कि जांच में पता चला कि चंडी पुरुलिया का रहने वाला है और पहले वह गन शॉप चलाया करता था। वर्ष 2001 में अवैध कामों के कारण उसका गन बिक्री का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। इसके बाद से ही वह अवैध तरीके से हथियारों की तस्करी में जुड़ गया था। उसके खिलाफ दुर्गापुर, कुल्टी, डानकुनी, संतालदीह और पुरुलिया में अपारधिक मामले दर्ज हैं और वह कई बार गिरफ्तार भी हो चुका है। सूत्रों ने बताया कि चंडी ने खुलासा किया कि वह लाइसेंस युक्त डीबीबीएल और एसबीबीएल के अवैध तरीके से हासिल करता है और फिर उसे समाजविरोधियों को बेच देता है।

आखिर कैसे हासिल करते है लाइसेंस वाला डीबीबीएल और एसबीबीएल बंदूक

सूत्रों ने बताया कि केंदा मामले की जांच में पता चला कि चंडी ने उक्त डीबीबीएल लालगढ़ थाने से हासिल किया था। दरअसल, लाइसेंस वाले डीबीबीएल गन को लाइसेंसी ने खुद ही थाने में जमा करवाया था क्योंकि उसने अपनी संपत्ति और अपनी रक्षा के लिए डीबीबीएल गन खरीदा था लेकिन उम्र हो जाने के कारण वह गन संभाल नहीं पा रहा था। इस बाबत उसने गन थाने में जमा करा दी। सूत्रों का कहना है कि थाने के एक ऑफिसर को इस मामले में संदेह के घेरे में रखा गया है। मामले की जांच कर सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि जांच में खुलासा हो रहा है कि उम्र दराज गन लाइसेंसी के गन को ही तस्कर अवैध तरीके से और सांठ-गांठ कर उक्त बंदूकें हासिल कर रहे है।

आखिर कैसे चल रहा है यह धंधा

सूत्रों ने बताया कि लाइसेंस वाले गन बेचने और गन जमा करने के नियम बनाये गये हैं। मगर जांच में पता चल रहा है कि बंगाल में इन नियमों की अवहेलना की जा रही है। दरअसल, डीबीबीएल और एसबीबीएल बंदूकें पहले लोग खुद की सुरक्षा या सिक्युरिटी गार्ड जैसी नौकरी के लिए लिया करते थे। मगर इन बंदूक को रखने वाले जब इन्हें संभाल नहीं पाते हैं तो वे इसे थाने में जमा कर देते हैं। इसके लिए उसे जिले के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से अनुमति लेकर ही थाने में जमा करा सकते हैं। हालांकि लाइसेंस लेने के लिए जिलों के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से अनुमति लेना अनिवार्य हैं। इसके अलावा अगर कोई अपनी लाइसेंस वाली गन बिक्री करना चाहता है तो इसके लिए भी डीएम और एसपी तथा संबंद्ध थानों से अनुमति लेनी पड़ती है। आधिकारिक सूत्रों का आरोप है कि ये नियम यहां केवल कागजों पर ही रह गये हैं। प्रत्येक थानों में जमा किये गये लाइसेंसी बंदूकों का कोई लेखा-जोखा ठीक से नहीं किया जाता है। आरोप यह भी है कि अब तो गन लाइसेंस की रिन्यू के लिए भी कोई नियम नहीं माने जाते हैं। पहले गन लाइसेंस रिन्यू के लिए सभी लाइसेंसी को गन लेकर डीएम के बताये गये निर्दिष्ट जगह पर पहुंचना होता था जहां डीएम खुद बंदूकों को देखकर और जांच कर ही लाइसेंस रिन्यू करते थे मगर अब ऐसा नहीं होता है। सूत्रों का कहना है कि प्रशासन की लापरवाही से ही ये हथियार समाजविरोधियों तक पहुंच रहे है।

कैसे लाइसेंसी गन का पता लगाते हैं तस्कर

सूत्रों ने बताया कि इन तस्करों के गांव तथा जिलों में एजेंट होते हैं। आरोप है कि इन एजेंटों के डीएम ऑफिस और थानों में काफी पहचान रहती है। वहीं से ये लाइसेंसी बंदूकों की लिस्ट हासिल करते हैं। इसके बाद उन बंदूकों को अपने तरीके से हासिल कर लेते हैं।
इसके अलावा डीबीबीएल और एसबीबीएल बंदूकों की मांग ज्यादा होती है। क्योंकि इनकी गोली का रेंज अच्छा होता है। साथ ही साथ इसमें छर्रा गोली होती है। अगर किसी को गोली मारी जाती है तो एक गोली से कई पार्ट निकलते हैं जिससे कई लोग एक साथ घायल हो जाते हैं। इसके अलावा अगर ये गोली शरीर के मुख्य हिस्से में लग जाती है तो इससे लोगों की मौत हो जाती है। समाजविरोधियों को यह इसी वजह से ज्यादा पसंद आती है

कितना मिलता है तस्करों को लाभ

सूत्रों ने बताया कि चंडी ने खुलासा किया कि एक गन के लिए वह 2 से 3 हजार रुपये निवेश करते हैं। इसके बाद पुरानी बंदूकों को साफ करते हैं ताकि हथियार नयी लगे। साथ ही वह केवल 1 से 2 बंदूकें ही एक बार में सप्लाई करता है। वह समाजविरोधियों को 20 से 25 हजार रुपये में बेच देते हैं। वैसे मार्केट में एक-एक बंदूकों की कीमत 50 हजार रुपये से ज्यादा है।

क्या बांग्लादेश में भी होती है तस्करी?

सूत्रों ने बताया कि जांच में यह भी पता चला कि यहां से ही लाइसेंसी बंदूकें बांग्लादेश में भी सप्लाई की जाती है। नदी के रास्तों से इन हथियारों की तस्करी की जाती है।

Story – बबीता माली

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