लोकसभा क्षेत्र :: उलबेडिय़ा
- मुस्लिम बहुल इस सीट पर 2009 से तृणमूल का है कब्जा, इस बार भाजपा से मिल रही कड़ी चुनौती
- तृणमूल सांसद सजदा अहमद के खिलाफ भाजपा से भूमिपुत्र अरुण उदय पाल चौधरी मैदान में
- एक समय वामपंथियों का गढ़ था यह क्षेत्र, लगातार आठ बार जीते थे हन्नान मोल्ला
- इस बार इस सीट पर तृणमूल की राह नहीं है आसान
कुल मतदाता : 17,75,607
पिछली बार पड़े वोट : 13,11,120
वोट प्रतिशत : 81.18
सात विधानसभा सीटें ::
उलबेडिय़ा पूर्व, उलबेडिय़ा उत्तर, उलबेडिय़ा दक्षिण, श्यामपुर, बागनान, आमता और उदयनारायणपुर
मौजूदा सांसद सजदा अहमद का रिपोर्ट कार्ड : 2019- 2024
संसद में उपस्थिति – 58 प्रतिशत
सवाल पूछे – 184
बहस में हिस्सा – 11
कोलकाता : बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से हावड़ा जिले का मुस्लिम बहुल उलबेडिय़ा संसदीय क्षेत्र कभी वामपंथियों का गढ़ था। माकपा के धाकड़ नेता हन्नान मोल्ला 1980 से लेकर 2004 तक लगातार आठ बार इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे। लेकिन 2009 के चुनाव में तृणमूल कांगे्रस ने यहां माकपा का किला ढाह दिया था। 2009 से इस सीट पर तृणमूल का लगातार कब्जा है। फिलहाल तृणमूल से सजदा अहमद यहां से सांसद हैं। पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है और वह तृणमूल के टिकट पर मैदान में हैं। वर्ष 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके पति सुल्तान अहमद लगातार दो बार इस सीट से जीते थे। दिल का दौरा पडऩे से सितंबर 2017 में उनका निधन हो गया था। इसके बाद 2018 में यहां हुए उपचुनाव में सजदा अहमद जीती थीं और उसके बाद 2019 में हुए चुनाव में भी उन्होंने ही जीत दर्ज की थी। पति के निधन के बाद लगातार दो बार यहां से चुनाव जीत चुकीं सजदा तीसरी बार मैदान में हैं। वहीं, भाजपा ने इस सीट पर उनके खिलाफ अरुण उदय पाल चौधरी को उतारा है, जो सामाजिक कार्यकर्ता रहे हैं और पार्टी के जिलाध्यक्ष भी हैं। लंबे समय से वे पार्टी से जुड़े हैं। खुद को भूमिपुत्र और सजदा अहमद को बाहरी बताकर चौधरी दावा कर रहे हैं इस बार यहां के नतीजे कुछ और ही होंगे। वैसे 2009 से हावड़ा जिला तृणमूल का मजबूत गढ़ है, पर मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में कभी कमजोर दिखने वाली भाजपा ने पिछले कुछ चुनावों में यहां अपना वोट शेयर काफी बढ़ाकर अपनी ताकत का एहसास कराया है। ऐसे में तृणमूल के लिए इस बार यहां राह आसान नहीं है। भाजपा भूमिपुत्र के सहारे तृणमूल के किले को ध्वस्त करने और उसके जीत के चौके को रोकने के लिए इस बार यहां टक्कर दे रही है। यहां हिंदीभाषी मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं।
कांग्रेस से अजहर मलिक मैदान में
वहीं, कांग्रेस ने इस सीट से अजहर मलिक को उतारा है। कभी माकपा की गढ़ रही इस सीट पर कांग्रेस की नजर मुस्लिम वोटों पर है। पार्टी को वाममोर्चा का भी समर्थन हासिल है। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि मुस्लिम वोट बंटने पर उसे फायदा होगा। वहीं, आइएसएफ अगर इस सीट से अपना उम्मीदवार उतारती है तो तृणमूल की चिंता और बढ़ सकती है। हालांकि आइएसएफ ने इस सीट पर अब तक अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की है। इस सीट पर पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होना है।
सातों विधानसभा सीटों पर तृणमूल का है कब्जा
ग्रामीण हावड़ा में आने वाले उलबेडिय़ा संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें हैं। जिसमें उलबेडिय़ा पूर्व, उलबेडिय़ा उत्तर, उलबेडिय़ा दक्षिण, श्यामपुर, बागनान, आमता और उदयनारायणपुर विधानसभा क्षेत्र शामिल है। इन सातों सीटों पर तृणमूल का कब्जा है। 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने सातों सीटों पर जीत दर्ज की थी।
उलबेडिय़ा का राजनीतिक इतिहास
उलबेडिय़ा लोकसभा सीट 1952 में ही अस्तित्व में आई थी। 1952 में हुए पहले आम चुनाव में यहां से कांग्रेस के सत्यबान राय ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 1957 के चुनाव में यहां से फारवर्ड ब्लाक (एम) के अरबिंद घोषाल जीते। 1962 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और पूर्णेंदु खान निर्वाचित हुए। 1967 में कांग्रेस के जेके मंडल यहां से जीते। 1971 में माकपा ने यहां कब्जा जमाया। 1971 से लेकर 2004 के चुनाव तक यहां से लगातार माकपा ने जीत हासिल की। माकपा के श्यामप्रसन्ना भट्टाचार्य ने 1971 और 1977 के चुनाव में यहां से जीत दर्ज की। इसके बाद 1980 से लेकर 2004 के चुनावों तक लगातार आठ बार इस सीट से माकपा के टिकट पर हन्नान मोल्ला ने जीत दर्ज की। मोल्ला ने 1980, 1984, 1991, 1996, 1998, 1999, 2000 और 2004 में जीत दर्ज कर इस सीट से लगातार 29 वर्षों तक सांसद रहे। 2009 में ये सीट तृणमूल ने झटक ली और तब से ये उसके कब्जे में है।
2019 में दो लाख से ज्यादा वोटों से जीती थीं तृणमूल
2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में तृणमूल उम्मीदवार सजदा अहमद ने दो लाख 15 हजार 359 वोटों के बड़े अंतर से इस सीट पर जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के जय बनर्जी को हराया था। सजदा को 53 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कुल 6,94,945 वोट मिले थे। वहीं, भाजपा के जय बनर्जी को 4,79,586 वोट (36.58 प्रतिशत मत) मिले थे। माकपा उम्मीदवार मकसूदा खातून को 81 हजार 314 वोट मिले थे। भाजपा ने 2019 के चुनाव में यहां अपना वोट प्रतिशत 13.25 प्रतिशत बढ़ाया था। 2014 के चुनाव में सजदा के पति सुल्तान अहमद ने माकपा के समीरउद्दीन मोल्ला को दो लाख एक हजार 222 वोटों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी। तृणमूल के सुल्तान अहमद को पांच लाख 70 हजार 785 वोट मिले थे जबकि समीरुद्दीन मोल्ला को तीन लाख 69 हजार 563 वोट मिले थे। 2014 में यहां भाजपा तीसरे स्थान पर रही थी। भाजपा उम्मीदवार रंजीत कुमार महंती को 1,37,137 वोट मिले थे।
2017 में सुल्तान अहमद का हर्ट अटैक से निधन हो गया। अहमद का नाम नारद स्टिंग कांड से भी जुड़ा था। इस मामले में सीबीआइ ने उनसे पूछताछ भी की थी। उनके निधन के बाद मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कहा था कि नारद मामले में सीबीआइ द्वारा पूछताछ के बाद से अहमद काफी तनाव में थे।
सुल्तान अहमद के निधन के बाद पत्नी बनी थीं सांसद
सुल्तान अहमद के निधन से खाली हुई इस सीट पर 2018 में उपचुनाव हुए, इसमें तृणमूल ने उनकी पत्नी सजदा अहमद को टिकट दिया। उपचुनाव में सजदा ने चार लाख 74 हजार वोटों के विशाल अंतर से जीत दर्ज की थी। दूसरे स्थान पर भाजपा उम्मीदवार अनुपम मलिक रहे थे। सजदा को 7,67,556 वोट मिले थे जबकि भाजपा को 2,93,046 वोट प्राप्त हुए थे। 2014 में दूसरे स्थान पर रहने वाले समीरुद्दीन मोल्ला को उपचुनाव में मात्र 1,38,898 वोट मिले थे। उपचुनाव में भाजपा ने दूसरा स्थान हासिल किया। 2019 में भी भाजपा दूसरे स्थान पर रही थी।
भाजपा को उम्मीद- भूमिपुत्र को ही लोग चुनेंगे
भाजपा नेताओं का कहना है कि तृणमूल भ्रष्टाचार में डूबी है। जनता भाजपा के साथ है। इस बार सही तरीके से चुनाव हुआ तो यहां कमल खिलेगा। भाजपा उम्मीदवार अरुण उदय पाल चौधरी ने कहा कि लोग इस बार भूमिपुत्र को ही चुनेंगे। उन्होंने तृणमूल उम्मीदवार को बाहरी करार दिया। उन्होंने कहा कि तृणमूल के कार्यकर्ता ही उन्हें नहीं पहचानते। उलबेडिय़ा के लोग पिछली गलतियों का प्रायश्चित करने को तैयार हैं।
वहीं, सजदा अहमद का कहना है कि यह सब भाजपा का चुनावी हथकंडा है। उन्होंने विश्वास जताया कि इस बार भी तृणमूल ही यहां भारी मतों से जीतेगी।
सांसद के लापता होने के भी लगे थे पोस्टर
हाल में उलबेडिय़ा क्षेत्र में सांसद के लापता होने के पोस्टर भी सामने आए थे, जिससे सियासी पारा गरम हो गया था। भाजपा ने आरोप लगाया कि 2018 में उपचुनाव और 2019 के आम चुनाव में जीत के बाद तृणमूल सांसद व उम्मीदवार सजदा अहमद को इलाके में कभी नहीं देखा गया। जनता के साथ उनका संपर्क नहीं है। भाजपा ने उन्हें प्रवासी पक्षी करार दिया। वहीं, तृणमूल विधायक समीर पांजा ने कहा कि विरोधी दल के लोग इस तरह के पोस्टर लगाकर बाजार गर्म करना चाह रहे हैं।
मुस्लिम वोटर्स हैं यहां वी फैक्टर
उलबेडिय़ा में मुस्लिम मतदाता वी (विक्ट्री) यानी जीताऊ फैक्टर माने जाते हैं। इसकी वजह यह है कि इस क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी करीब 33 प्रतिशत है। राज्य में 2011 में सत्ता परिवर्तन के बाद से मुस्लिम समुदाय तृणमूल के कोर वोट बैंक माने जाते हैं। ऐसे में यहां तृणमूल को हराना आसन भी नहीं है। तृणमूल के इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा व अन्य दलों को कड़ी मशक्कत करनी होगी। यह सीट एक समय लंबे वक्त तक माकपा का गढ़ रही है। 2009 के चुनाव में तृणमूल के टिकट पर सुल्तान अहमद ने माकपा के लगातार आठ बार के सांसद हन्नान मोल्ला को हराकर पहली बार यह सीट तृणमूल की झोली में दी थी। तब से यह सीट तृणमूल के कब्जे में है।
1882 में पड़ा था उलबेडिय़ा नाम
महिषरेखा के नाम से 1873 में उलबेडिय़ा उपखंड का गठन किया गया था, लेकिन 1882 में इसका नाम उलबेडिय़ा रखा गया। प्रसिद्ध बैपटिस्ट विलियम कैरी ने ब्रिटिश शासन के दौरान उलबेडिय़ा का कई बार दौरा किया था। सन 1930 के दशक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया गया था। उस समय उलबेडिय़ा के श्यामपुर थाने में आजादी के समर्थकों ने उग्र प्रदर्शन किया था। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1938 में उलबेडिय़ा के गोरूर हाट में गए थे और वहां उन्होंने लोगों को संबोधित किया था। हुगली नदी के किनारे बसे उलबेडिय़ा में ही भारत का पहला टू व्हीलर प्लांट 1965 में लगाया गया था। यहां कई मशहूर स्कूल कालेज हैं जो उच्च शिक्षा के लिए जाने जाते हैं। ग्रामीण हावड़ा के इस क्षेत्र में हर साल बाढ़ एक बड़ी समस्या है।