गुवाहाटी : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में 13,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया की सबसे लंबी दो लेन की सेला सुरंग को शनिवार को राष्ट्र को समर्पित किया।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के एक अधिकारी ने बताया कि संगठन द्वारा 825 करोड़ रुपये की लागत से बनाई गई सुरंग सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब है। उन्होंने बताया कि यह सुरंग तवांग को हर मौसम में सड़क संपर्क मुहैया कराएगी।
इस परियोजना में दो सुरंगें बनाई गई हैं, जिनमें पहली 1,003 मीटर लंबी एकल मार्ग सुरंग है और दूसरी 1,595 मीटर लंबी है, जिसमें आपात स्थिति के लिए एक निकासी सुरंग भी है। इसमें 8.6 किलोमीटर लंबी संपर्क मार्ग भी है।
बीआरओ अधिकारी ने कहा कि मुख्य सुरंग के समानांतर बनी निकासी सुरंग हर 500 मीटर पर एक दूसरे से जुड़ी है। उन्होंने बताया कि आपातकालीन स्थिति में, इस निकासी सुरंग का उपयोग बचाव वाहनों की आवाजाही और फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए किया जा सकता है।
इस सुरंग से 80 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति के साथ प्रतिदिन 3,000 कार और 2,000 ट्रक निकल सकते हैं। इसका निर्माण ‘न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड’ का उपयोग करके किया गया है।
यह परियोजना आवश्यक है, क्योंकि क्षेत्र में भारी बारिश, हिमपात और भूस्खलन के कारण बालीपारा-चारिद्वार-तवांग सड़क को अक्सर बंद करना पड़ता है।
सुरंग की आधारशिला मोदी ने नौ फरवरी, 2019 को रखी थी और निर्माण उसी वर्ष एक अप्रैल को शुरू हुआ था।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘सेला सुरंग का उद्घाटन हमारे लिए अत्यंत गौरव का पल है। कुछ साल पहले जब मैंने इसकी आधारशिला रखी थी, तो कुछ लोगों को यकीन नहीं था कि यह परियोजना जल्द पूरी होगी, क्योंकि कई दशकों तक चली कार्य संस्कृति के कारण देरी सामान्य बात थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन)सरकार एक अलग दृष्टिकोण के साथ काम करती है और सुरंग का उद्घाटन किया गया है, जिससे आप सभी को अरुणाचल प्रदेश आने का एक और कारण मिल गया है।’’
बीआरओ अधिकारी ने बताया कि पहले सेला दर्रे के मार्ग में केवल एक लेन की सड़क थी और कई जगहों पर खतरनाक मोड़ थे, जिसके कारण भारी वाहन और कंटेनर ट्रक तवांग नहीं जा पाते थे।
अधिकारी ने बताया कि पिछले पांच वर्षों से हर दिन औसतन लगभग 650 कर्मियों और मजदूरों ने इस परियोजना पर कार्य किया और इसे पूरा करने में करीब 90 लाख से अधिक मानव-घंटे लगे।
परियोजना के निर्माण में कुल मिलाकर 71,000 मीट्रिक टन सीमेंट, 5,000 मीट्रिक टन इस्पात और 800 मीट्रिक टन विस्फोटक का उपयोग किया गया।
उन्होंने कहा कि परियोजना को पूरा करने में पांच साल लगे, जिनमें से लगभग 762 दिन भारी बर्फबारी या बारिश हुई और 832 दिन तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहा, जिससे काम को अंजाम देने वाले कर्मियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
अधिकारी ने बताया कि बीआरओ ने सुरंग-1 तक 7,100 मीटर लंबा संपर्क मार्ग, सुरंग-2 तक 340 मीटर संपर्क मार्ग और दोनों सुरंगों के बीच 1,340 मीटर लंबी सड़क का भी निर्माण किया।
उन्होंने बताया कि पिछले साल जुलाई में सुरंग का निर्माण कार्य अंतिम चरण में था, तभी ऊंची चोटियों पर बादल फटने की घटना हुई इसकी वजह से संपर्क सड़कों के निर्माण में देरी हुई।
बीआरओ के अधिकारी ने कहा कि इस परियोजना का उद्देश्य वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना की क्षमताओं को बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि इससे भारत-चीन सीमा के अग्रिम इलाकों में सैनिकों, हथियारों और साजो सामान की त्वरित तैनाती सुनिश्चित होगी।
उन्होंने कहा कि इससे न केवल तवांग सेक्टर में भारतीय सशस्त्र बलों की रक्षा तैयारियों को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी वृद्धि होगी।
अधिकारी ने कहा कि यह परियोजना ‘‘सेला दर्रे को दरकिनार करते हुए तवांग के अग्रिम इलाकों तक सालभर संपर्क सुनिश्चित करेगी, जो न केवल सैनिकों और रसद आपूर्ति की सुचारू आवाजाही की सुविधा प्रदान करेगी, बल्कि क्षेत्र में हमारी रक्षा क्षमताओं को भी मजबूत करेगी।’’