राजधानी दिल्ली से भी आगे चले हम
कोलकाता : ‘दिल्ली अब दूर नहीं’ यह तो सबने सुना है लेकिन हम कोलकातावासी तो वायू प्रदूषण के मामले में दिल्ली पहुंच भी गए और अब तो उससे आगे भी निकल रहे हैं। आपको बता दें कि महानगर की सांसों में लगातार तेजी से जहर घुलता जा रहा है। यदि प्रत्येक दिन के प्रदूषण के स्तर पर नजर डाली जाए तो यह दिल्ली से भी अधिक खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। इसका सबसे अधिक असर बच्चों और वृद्धों पर हो रहा है। आये दिन किसी ना किसी व्यक्ति को सांस में तकलीफ की शिकायत के साथ अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ता है।
गाड़ियां कम प्रदूषण ज्यादा
कोलकाता की तुलना में राजधानी दिल्ली की सड़कों पर दोगुना गाड़ियां दौड़ती हैं। दिल्ली जहां आम समय में रोजाना सड़कों पर करीब 40 लाख गाड़ियां दौड़ती हैं वहीं कोलकाता में इसकी आधी करीब 20 लाख गाड़ियां होती है। इसके बावजूद नवंबर माह में जहां कोलकाता में वायु प्रदूषण स्तर को खतरनाक माना जा रहा है, वहीं दिल्ली के प्रदूषण को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है।
कोलकाता में वायु प्रदूषण का कारण
पर्यावरणविदों की मानें तो कोलकाता में पर्यावरण का प्रमुख कारण 10 वर्ष से अधिक पुरानी डीजल की गाड़ियों और 15 वर्ष से अधिक पेट्रोल की गाड़ियों का उपयोग करना वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। कोलकाता में करीब 80 धुंआ जांच केन्द्र हैं जिनपर हमेशा से आरोप लगाया जाता है कि वे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। गाड़ियों का धुंआ जांचने के लिए जिन मशीनों का उपयोग किया जाता है, उनकी प्रत्येक 6 महीने में कैलीब्रेशन (जांच) करना पड़ता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कोलकाता में ऐसा नहीं किया जाता है। धुंआ जांच केन्द्र में गाड़ियों के धुंए की जांच करने और पॉल्युशन अंडर कंट्रोल (पीयूसी) प्रमाण पत्र देने वाले कर्मचारियों को पास ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा डिग्री या समकक्ष, ड्राइविंग लाइसेंस, 2 वर्ष की किसी ऑटोमोबाइल वर्कशॉप में काम करने का अनुभव अनिवार्य होता है। आरोप लगाया जाता है कि कोलकाता में जो धुंआ जांच केन्द्र हैं, वहां कार्य करने वाले कर्मचारी मोटर व्हीकल के नियमानुसार प्रशिक्षित नहीं होते हैं। वे आम तौर पर कोई और कार्य करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं, किन्तु उनसे धुंआ जांचने का कार्य करवाया जाता है। इसके अलावा महानगर में किसी ना किसी स्थान पर कचरें में आग लगाकर जलाया जाता है जो प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है।
लगातार प्रयास से नियंत्रण में है दिल्ली का प्रदुषण
पर्यावरण तकनीशियन सौमित्र मोहन का कहना है कि सुप्रिम कोर्ट के आदेश को दिल्ली ने सख्ती से पालन किया है। दिल्ली की सड़कों पर अब 10 वर्ष से अधिक पुराने ना तो कोई डीजलचलित गाड़ियां दिखती है और ना ही 15 वर्ष से अधिक पुरानी पेट्रोलचलित गाड़ी होती है। इसके साथ ही दिल्ली में ऑड-इवेन नियम को लागू किया गया है। इस वजह से एक दिन में सड़क पर गाड़ियों की कुल संख्या लगभग आधी हो गयी। दिल्ली में गाड़ियों के प्रदूषण जांच करने वाले और सर्टिफिकेट प्रदान करने वाले व्यक्ति की नियुक्ति उचित तरीके से और अनुभवी व्यक्तियों की होती है।
इन उपायों से रोका जा सकता है महानगर के बढ़ते प्रदूषण स्तर
पर्यावरण तकनीशियन सौमित्र मोहन का कहना है कि महानगर कोलकाता में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा बढ़ गया है। हवा में आम तौर पर जिस पीएम 2.5 (श्वासवाहित धुलकण) 60 माइक्रोग्राम/क्यूबीक मीटर रहना चाहिए वह करीब 250 प्रतिशत बढ़ गया है। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे शहर की स्थिति कितनी खतरनाक है। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण को रोकने के लिए इलेक्ट्रीक बसों की संख्या को बढ़ाना होगा। यदि इलेक्ट्रीक बसों की संख्या को बढ़ाया नहीं जा सकता तो जल पथ के उपयोग को बढ़ाना होगा। यदि संभव है तो मोटर लॉन्च को बैटरी चालित करना होगा। इसके अलावा सीएनजी लाकर या गाड़ियों का परिचालन विद्युत से करना होगा। यदि इनमें से किसी को भी मानना संभव नहीं होता है तो कम से कम सुप्रिम कोर्ट के नियम का सख्ती से पालन करना होगा, जैसा दिल्ली में किया गया है। 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजलचलित गाड़ी और 15 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोलचलित गाड़ियों के परिचालन को बंद करना होगा।
Written By: मौमिता भट्टाचार्य