जिम्मेदारियों के तले, गुम हुआ बचपन

 ‘ये जो छोटे है, अपने घर के बड़े हैं’

कोलकाता, समाज्ञा : कोलकाता में क्रिसमस मतलब “पार्क स्ट्रीट”। क्रिसमस से एक सप्ताह पहले से पार्क स्ट्रीट को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाने लग जाता है। लोगों में पार्क स्ट्रीट आने का उत्साह भी बढ़ जाता है। बाजारों में क्रिसमस त्यौहार के लिए सांता वाली टोपियां, रंग-बिरेंगे गुब्बारे, खिलौने, चश्मे, लाइट, क्रिसमस ट्री, व अन्य सजावट की वस्तुएं मिलना शुरू हो चुके है। इस त्योहार को लेकर बच्चों में काफी उत्साह देखा जाता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके लिए सांता क्लॉज ढेर सारे उपहार लेकर आएगा। वही कुछ बच्चों के लिए यह त्योहार आमदनी का जरिया लेकर आता है। इन दिनों आप पार्क स्ट्रीट में कई ऐसे बच्चों को देख सकते हैं जो क्रिसमस ट्री, सजावट की वस्तुएं, गुब्बारे, टोपियां और खिलौने बेच रहे हैं। ताकि उन्हें दो पैसे मिल सके और उन पैसों से घर में कुछ दिनों तक ही सही लेकिन दो वक्त की रोटी बन जाये। इनमें से कुछ बच्चे ऐसे भी है जिन्हें क्रिसमस का अर्थ भी नहीं पता है। कुछ  बच्चे तो विशेषकर क्रिसमस का समान बेचने ही कोलकाता में आए हैं। समाज्ञा की संवाददाता ने उनमें से ही कुछ बच्चों से बात की। 

क्रिसमस का समान बेचने ही बिहार से आया है कोलकाता

मोहम्मद जमशेद नामक एक बच्चे ने बताया कि वह बिहार का रहने वाला है। वह कोलकाता सिर्फ क्रिसमस के समय आता है। क्योंकि क्रिसमस के समय कोलकाता में काफी रौनक रहती है और पार्क स्ट्रीट में घुमने आए लोग क्रिसमस के समानों को बड़े उत्साह के साथ खरीदते है। बच्चे ने बताया कि घर में उसके 3 और छोटे भाई बहन और माता-पिता है। उसेक पिता बिहार में ही राजमिस्त्री का काम करते है। घर की आर्थिक स्थिति दयनीय है जिसके कारण वह त्योहारों के समय इसी तरह सामान बेचकर पिता का हाथ बटाता है। बच्चे ने कहा कि क्रिसमस के बाद वह फिर बिहार चला जाएगा और जो कुछ भी यहां से कमाई हुई होगी वह घर जाकर फिर उससे पढ़ाई करेगा। इधर सुंदरबन से भी एक बच्ची पार्क स्ट्रीट में सामान बेचने आई हुई है। बच्ची ने अपना नाम नासिमुन मुल्ला बताया है, वह सुंदरवन की रहने वाली और वहीं वह कक्षा 6 में पड़ती है। उसकी मम्मी यहीं दूसरों के घर में झाड़ू-पोछे का काम करती है और उसके पापा कोई काम नहीं करते है। घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के कारण वह कोलकता आकर त्यौहारों पर दुकान लगाती है। यह दुकान उसके भाई की है, भाई का हाथ बटाने के लिए वह प्रतिवर्ष यहां त्यौहारों पर आती है विशेषकर क्रिसमस पर क्योंकि क्रिसमस पर ज्यादा समानों की बिक्री हो जाती है। बच्ची ने बताया क्रिसमस के समय वह प्रतिदिन करीब 300 रूपये कमा लेती है।

पैसे के अभाव में लगाते है दुकान

पार्क स्ट्रीट में ही गुब्बारे बेच रही एक छोटी बच्ची जायरा खातून ने कहा कि पैसे नहीं होने के कारण मैं यहां गुब्बारे बेचती हूं, मेरे पापा भी गुब्बारे बेचते है और मम्मी दूसरों के घर में झाडूं-पोछा करती है और उसकी बड़ी बहन चिविंगम बेचती है। बच्ची ने बताया कि इन रूपयों से जो भी कमाई होती है, उससे घर में मम्मी-पापा की मदद हो जाती है। बच्ची कोलकाता के ही एक स्थानीय स्कूल में कक्षा यू.के.जी में पढ़ती है। सुबह वह स्कूल जाती है और स्कूल से लौटने बाद बाद वह गुब्बारे बेचती है। वहीं फुटपाथ पर ही क्रिसमस का समान बेच रही शाहीन ने बताया कि उसके पिता नहीं है और उसकी मां दूसरों के घर में साफ-सफाई का काम करती है। त्यौहारों पर अच्छी कमाई हो जाती है इसलिए वह दुकान लगाती है जिससे उसकी मां की मदद हो सके और घर में कुछ रूपये आ सके। शाहीन ने बताया कि उसकी मां ने उसे क्रिसमस की दुकान लगाने के लिए रूपये व सामान दिए है, दिन भर में वह करीब 200 रूपये कमा लेती है। वह कोलकाता के ही एक स्थानीय स्कूल में कक्षा 4 में पढ़ती है। वह सुबह 8 से 12 बजे तक स्कूल रहती है उसके बाद फिर 1 बजे रात 8 बजे तक दुकान लगाती है। वहीं फुटपाथ पर ही क्रिसमस ट्री, टोपियां, चश्में व अन्य सजावट की वस्तुएं बेच रहा एक अन्य बच्चा जिसका नाम रविकुल है उसने बताया कि उसके मम्मी-पापा दोनों ही टोपी बेचते है और वे क्रिसमस का समान बेच रहा ताकि ज्यादा आमदनी हो सके जिससे मरे मम्मी-पापा की आर्थिक मदद हो सके और कुछ रूपये घर में ज्यादा आ सके। उसने यह भी बताया कि वह पढ़ाई नहीं करता स्कूल जाने के पैसे नहीं है, जब क्रिसमस खत्म हो जाएगा तो उसके बाद गुलाब के फूल बेचता है। इन बच्चों के अलावा कई और भी बच्चे है जो त्यौहारों पर दुकान लागाकर अपने माता-पिता की आर्थिक सहायता करते हैं।

written by – अंकिता यादव

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