हैदराबाद : क्या नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर रायशुमारी के लिए विभिन्न मंचों पर नए सिरे से मंथन होगा? क्या सरकार विभिन्न समूहों के बीच विचार मंथन से बनी राय मानेगी? ऐसे सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के बीच सीएए या एनपीआर जैसे नियमों एवं कानूनों के विरोध में हिंसा, तोड़फोड़ का रास्ता छोड़कर विचार-विमर्श का विकल्प अपनाने की सलाह दी है। नायडू ने कहा कि प्रदर्शनों में हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए बल्कि ऐसे मुद्दों पर उच्चस्तरीय रचनात्मक विमर्श की जरूरत है। इतना ही नहीं, उपराष्ट्रपति ने केंद्र सरकार को भी विरोधियों की आशंकाओं को दूर करने की नसीहत दी।.
उन्होंने कहा, ‘सीएए हो या एनपीआर, देश के लोगों को संवैधानिक सदनों (विधानमंडलों एवं संसद), बैठकों और मीडिया में इस बात पर प्रबुद्ध, सार्थक और रचनात्मक बहस करना चाहिए कि यह कब आया, क्यों आया और इसका क्या असर हो रहा है, क्या इसमें सुधार की जरूरत है, अगर है तो क्या सुझाव हैं। अगर हम इसपर चर्चा करेंगे तो हमारा सिस्टम मजबूत होगा और लोगों की समझ भी बढ़ेगी।’ नायडू ने यह विचार संयुक्त आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री एम. चन्ना रेड्डी की जयंती पर आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए रखा।
‘असहमति रखने की हो अनुमति’
उन्होंने आगे कहा, ‘असहमति रखने की आजादी देना लोकतंत्र का एक मौलिक सिद्धांत है। हम चाहे इसे पसंद करें या नापसंद, किसी भी मुद्दे के दूसरे पहलू को भी जरूर सुनना चाहिए और उसके मुताबिक उचित कदम भी उठाना चाहिए।’ माना जा रहा है कि उपराष्ट्रपति की यह नसीहत केंद्र सरकार के लिए है। हालांकि, उन्होंने सीएए और एनपीआर के आलोचकों और प्रदर्शनों में हिंसा फैलाने वालों को भी स्पष्ट संदेश दिया। नायडू ने कहा, ‘प्रदर्शनों के दौरान हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।’ उन्होंने रचनात्मक, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध अथवा असहमति प्रकट करने की सलाह देते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने हिंसा के किसी भी स्वरूप को नकारा, यहां तक कि अत्यंत चुनौतीपूर्ण वक्त में भी।
पीएम ने भी हिंसा पर कही यह बात
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों में हुई हिंसा पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि युवा पीढ़ी अराजकता पसंद नहीं करती है, उसे अनुशासन और सिस्टम पसंद है। मोदी ने कहा , ‘एक बात तो तय है कि हमारे देश के युवाओं को अराजकता के प्रति नफरत है। अव्यवस्था और अस्थिरता के प्रति उनके मन में चिढ़ है। वे परिवारवाद, जातिवाद, अपना-पराया, स्त्री-पुरूष जैसे भेदभाव को पसंद नहीं करते हैं।’
प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा
गौरतलब है कि 12 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून अस्तित्व में आने के बाद असम और मेघालय से शुरू हुआ प्रदर्शन देखते-देखते पूरे देश में फैल गया। प. बंगाल से लेकर केरल तक हुए प्रदर्शनों में कई जगह हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ हुई। उत्तर प्रदेश में तो हिंसा और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदर्शनकारियों की पहचान कर वसूली की प्रक्रिया भी चल रही है।
विवादों के घेरे में एनपीआर भी
इस बीच एनपीआर पर भी विवाद हो गया है। प. बंगाल, केरल, राजस्थान जैसे विपक्षी शासन वाले राज्यों ने अपने यहां एनपीआर की प्रक्रिया बंद करने का ऐलान भी कर दिया। उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भी कहा कि वह एनपीआर फॉर्म नहीं भरेंगे। उनसे पहले बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका अरुंधति राय ने तो यहां तक कहा दिया कि अगर एनपीआर के लिए नाम, पता पूछा जाए तो क्रमशः रंगा-बिल्ला और रेस कोर्स रोड बता दें। बता दें रंगा-बिल्ला दो भाई थे जिन्हें फांसी की सजा दी गई थी और रेस कोर्स रोड प्रधानमंत्री का दिल्ली स्थित सरकारी आवास है।