खागरागढ़ के आतंकी से लेकर जाली नोटों के तस्करों के जुर्म कबूलने का उद्देश्य आखिर है क्या?

मूलस्रोत में लौटने के लिए कर रहे हैं जुर्म कबूल!

कोई षड्यंत्र नहीं, दोष स्वीकार करने से कोर्ट का समय बचता है : एनआईए

बबीता माली

कोलकाता, समाज्ञा : वर्ष 2014 में खागरागढ़ ब्लास्ट की घटना ने ही यह उजागर किया था कि बंगाल में जमात-उल-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश (जेएमबी) के आतंकी सक्रिय हो रहे हैं। वे अपना स्लीपर सेल तैयार कर रहे हैं और बांग्लादेश में आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए बंगाल से युवाओं को जिहाद के लिए तैयार किया जा रहा है। इसके बाद ही एक के बाद एक कई जेएमबी आतंकियों को गिरफ्तार किया गया और उनका उद्देश्य जानने की कोशिश की गयी। नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) और कोलकाता पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) और सीआईडी भी जेएमबी आतंकियों की धर-पकड़ में लगी हुई है। हालांकि खागरागढ़ ब्लास्ट में एनआईए और एसटीएफ ने अलग-अलग अभियान चलाकर शीर्ष नेतृत्व को गिरफ्तार कर चुकी है। अभी जेएमबी का हेड कहलाने वाला बांग्लादेश का सलाउद्दीन सालेह को पकड़ने के लिए एनआईए तथा एसटीएफ दोनों ही काफी प्रयत्नशील है। इसी बीच एनआईए की हिरासत में रहने वाले जेएमबी के 24 आतंकियों ने अपने ऊपर लगाये गये आरोपों को स्वीकार कर लिया जिसके बाद ही मजिस्ट्रेट ने उनकी सुनवाई पूरी कर उन्हें सजा सुना दी। हालांकि देश के खिलाफ आतंकी गतिवधियां चलाने वाले इन आतंकियों ने आखिर क्यों अपना जुर्म कबूल किया, इसको लेकर कई प्रश्‍न उठ रहे हैं। विभिन्न एजेंसियों ने इन आतंकियों के जुर्म कबूलने को लेकर षड्यंत्र की आशंका जतायी है। सिर्फ आतंकी ही नहीं अब एनआईए के हत्थे चढ़े जाली नोटों के तस्करों ने भी अपना जुर्म कबूल किया। दरअसल, गत 13 फरवरी को बांग्लादेशी जाली नोटों के तस्कर मिजान शेख ने अपने ऊपर लगे आरोपों को स्वीकार कर लिया वहीं 15 फरवरी को भी दो जाली नोटों के तस्करों नासिर शेख और ताजेल शेख ने भी अपना दोष स्वीकार किया। इन दोनों ही मामले में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने उनके खिलाफ सजा की घोषणा की। हालांकि दोष स्वीकार करने से सजा कम होती है। आतंकियों और तस्करों के इस तरह से अचानक दोष स्वीकार कर लेना महज सजा कम हो जाना और मूलस्रोत में लौटना ही कारण है या इसके पीछे कोई साजिश है। हालांकि एनआईए अधिकारियों ने इसके पीछे किसी भी साजिश होने से इनकार किया है।

मामलों का जल्दी निपटारा होता है

एनआईए सूत्रों ने बताया कि दोष स्वीकार करने से कोर्ट का समय बचता है। मामले में जल्द सजा सुना दी जाती है और मामलों का जल्दी निपटारा होता है। दरअसल, आज नहीं तो कुछ सालों बाद तो इन्हें सजा मिलनी है, इस बाबत वे अभी ही जांच के दौरान अपने जुर्म स्वीकार कर ले रहे हैं। इससे कोर्ट का और जांच अधिकारी दोनों का ही समय नष्ट नहीं हो रहा है और अभियुक्तों को सजा मिल जा रही है।

अगर मूलस्रोत में लौटना चाहते हैं तो इसमें हर्ज क्या है : श्यामल घोष

एनआईए के वकील श्यामल घोष का कहना है कि एक अभियुक्त को दोष स्वीकार कराने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। काफी समय दिया जाता है। अगर खागरागढ़ ब्लास्ट की बात की जाये तो इसमें 630 के करीब प्रत्यक्षदर्शी है। मामला पिछले 4 सालों से चल रहा है। जहां तक जेएमबी आतंकियों के दोष स्वीकार करने की बात है जिन्होंने दोष स्वीकार किया है उन्हें जिहादी बनाने की कोशिश की गयी थी। वे अब जीवने के मूलस्रोत लौटना चाहते हैं तो इसमें हर्ज क्या है। जेल में डालने का मकसद यही होता है अपराधी सुधर जाये और जीवन को एक मकसद दे। इससे समाज की भलाई ही होगी। उन्होंने यह भी कहा कि खागरागढ़ में 5 आतंकी मुख्य आतंकियों में है मगर इन पांचों ने अभी तक अपना दोष स्वीकार नहीं किया है।

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