नई दिल्ली : टीचिंग को एक नोबल प्रफेशन माना जाता है। समाज में टीचरों को सम्मान की नजर से देखा जाता है, जो प्रतिभाओं को निखारते हैं। अब सम्मान के साथ-साथ उन्हें आकर्षक वेतन भी मिलने लगा है। शुरुआत बेंगलुरु से हुई है जहां बेस्ट टैलेंट को अपने साथ जोड़ने के लिए शहर के इंटरनैशनल स्कूल सैलरी का नया रेकॉर्ड बना रहे हैं। इससे बहुत ज्यादा ग्लैमरस नहीं माने जाने वाला टीचिंग का प्रोफेशन फिर से आकर्षक हो गया है।
असंतुलन को दूर करते बेंगलुरु के प्राइवेट स्कूल
बेंगलुरु के इंटरनैशनल स्कूल टीचरों पर पैसों की बारिश कर रही हैं। वाइटफील्ड-सरजपुर रोड स्थित एक इंटरनैशनल स्कूल भारतीय मूल के टीचरों को 7.5 लाख से 18 लाख रुपये सालाना (90,000 रुपये से 1.5 लाख रुपये मासिक) सैलरी दे रहा है। प्रिंसिपल को तो 2.2 लाख अमेरिकी डॉलर (1.5 करोड़ रुपये) सालान सैलरी दे रहा है। स्कूल के विदेश शिक्षकों को 60,000 से 90,000 डॉलर सालाना सैलरी मिल रही है। इसके अतिरिक्त मुफ्त में रहने की व्यवस्था, बच्चों की शिक्षा और उनके देश के लिए एक बार का हवाई किराया जैसी सुविधाएं भी मिल रही हैं। इससे दूसरे निजी स्कूलों पर भी असर पड़ा है। पब्लिक स्कूलों का एक मशहूर चेन अपने प्राइमरी टीचरों को 62,000 रुपये से 1.75 लाख रुपये प्रति महीने दे रहा है, जबकि प्रिंसिपल को 1.25 लाख से 2.5 लाख रुपये प्रति महीने दे रहा है। हालांकि, छप्परफाड़ सैलरी के साथ-साथ स्कूलों ने शिक्षकों की भर्ती के पैमानों को काफी कड़ा कर दिया है। स्कूल डेमो क्लास में छात्रों के फीडबैक को भी शिक्षक भर्ती का अहम आधार बना रहे हैं। वैसे भी टीचिंग कोई बच्चों का खेल थोड़े है।
भारत में शिक्षकों को मिलते हैं कम पैसे
7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक प्राइमरी टीचरों की शुरुआती सैलरी 35,370 रुपये प्रति महीने है, लेकिन दिल्ली समेत तमाम शहरों में प्राइवेट स्कूल उसकी अनदेखी कर औसतन 15,000 रुपये सैलरी दे रहे हैं। हकीकत यह है कि केंद्रीय विद्यालय जैसे सरकारी स्कूल निजी स्कूलों की तुलना में बेहतर सैलरी दे रहे हैं। दिल्ली में निजी स्कूलों में 20 साल तक के अनुभव वाले टीचर को औसतन 60 हजार रुपये प्रति महीने मिलते हैं, जबकि केंद्रीय विद्यालयों में ऐसे शिक्षकों को 80,000 रुपये प्रति महीने वेतन मिलता है। भारतीय टीचरों को अन्य देशों की तुलना में काफी कम सैलरी मिलती है।
टीचरों की सैलरी कम तो क्या स्कूलों की नहीं हो रही अच्छी कमाई?
इसका मतलब यह नहीं है कि स्कूल कमा नहीं रहे हैं। द संडे गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में प्रमुख निजी स्कूलों में प्रति छात्र औसत फीस 2 लाख रुपये से ज्यादा है और एक स्कूल में औसतन 7,500 छात्र पढ़ते हैं। इसका मतलब है कि स्कूल बच्चों की फीस से साला करीब 150 करोड़ रुपये कमा रहे हैं। जबकि, इसका 10 प्रतिशत भी टीचरों की कुल सैलरी पर खर्च नहीं करते।